पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/४६४

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जिसका तुम सुबेरे से पचड़ा गा रहे हो ! हाय ! हाय ! | आज ही थोड़े हुई है सनातन से चली आई है । और महाराज ! अरे क्या हुए ? गद्दी से उतारे गए ? हाय ! फिर राजनीति राक्षा भी तो इसी से होती है । पर ऐसे महा अनर्थ हुआ । महाराज नहीं गए हिन्दुस्तान गया। ही सारे भारतवर्ष की प्रजा का सार ध्यान नहीं भला पूरा हाल तो कहो (कुछ ठहर कर ऊपर देखकर) रखती । रामपुर में दुरंत यवन हिन्दुओं को इतना दुख हां समझा । हाय बहुत ही बुरा हुआ बुढ़िया मरने का देते हैं पूजा नहीं करने देते शंख नहीं बजता पर सरि डर नहीं जम परचने का डर है ? परचल गोह करौंदा इस बात की पुकार नहीं सुनती। यद्यपि यह अनर्थ वहां खाय । वाजिदअलीशाह भी तो इसी खुराफात से उतरे है जहां पहिले सारी राज्य था और जिस देश के विषय थे "मा और भाई मलिक : से इनसाफ चाहने के लिये में पक्का अहदनामा हो चुका है । अहदनामे पर क्या, विलायत पहुंचे वह कुछ सुनाती (न ?) दोनों आपनी जैसे अधिकारी आते हैं वैसा बरताव होता है । सरि जान मलिक : पर निछावर कर गुजरे" "सो बातें सुनि बिचारी कुछ देखने आड़े ही आती है । धन्य है ईश्वर ! राजसभा में वे निशंक बिस्तारी जू" भाई यस्यास्ति सन १५९९ में जो लोग सौदागरी करने आये थे वे आज भाग्यं स नर : कुलीन : स पण्डित : श्रुतिमान् गुणाज्ञ : स्वतंत्र राजाओं को यों दुध की मक्खी बना देते हैं । वा स एव दासा स च दर्शनीय : सबेंगुणा : माध्यवता यह तो बुद्धि का प्रभाव है । साढ़े सत्रह सौ के सन् में मधीना : । हमारा तो सुनकर जी जल गया कि जब आरकाट में क्लाइव किले में बन्द था तो कविवचन सुधा नाम का कोई अखबार सोने के और | हिन्दुस्तानियों ने कहा कि रसद घट गई है सिर्फ चावल लाल टाइप में उस दिन छपा था जिस दिन महाराज है सो गोरे खाय हम लोग मांड पीकर रहेंगे । सन् उतारे गए । वाहरे शिफारशियो ? अरे खुशामद की भी १६१७ में जब सर्कार से सब मरहठे मात्र बिगड़े थे तब कुछ हद होती है । एक बादशाह ने हुक्म दिया बड़े-बड़े सिर्फ बड़ौदे वाले साथ थे । उन के कुल की यह दशा ! खुशामदी लाओ । तीन आदमी हाजिर किये गए । यह तो जब पहिले कमीशन आया था तभी हम समझे बादशाह ने पूछा तुम खुशामद कर सकोगे । पहिला थे । यदा श्रीय माधवं बासुदेवं सर्वात्मना पाण्डवार्थे बोला हुजूर क्यों नहीं। बादशाह ने उसे निकाल दिया। | निविष्टं । यस्येमा गां विक्रममेक माहुस्तादानाशंसे दूसरे से पूछा तुम खुशामद कर सकोगे ? उसने कहा बिजयाय संजय । जो हो मलहर की यह करतूत भी जहाँपनाह जहाँ तक हो सकेगी, बादशाह ने उसे भी | कभी न भुलैगी । कलकत्ते के प्रसिद्ध राजा अपूर्व कृष्ण निकाल दिया । तीसरे से भी पूछा तुम खुशामद कर से किसी ने पूछा था कि आप लोग कैसे राजा हैं तो सकोगे । बोला गरीब परवर क्या मजाल भला मेरी| उन्होंने उत्तर दिया जैसे सतरंज के राजा, जहां चलाइए ताकत है कि हुजूर की खुशामद कर सकू । बादशाह वहां चलें । (ऊपर देख कर) क्या कहा ? यह सब ने कहा हां यह पक्का खुशामदी है । ठीक वही हाल ठीक, पर कहे कौनं ? सो तो ठीक है 'कोनसाहिबनू- है। और निबाह भी इसी से है हजार जान दे मरो अक्खे"यों नहीं यों कर । राजा और दैव बराबर होते शिफारिश नहीं तो कुछ भी नहीं । जान भी दे तो हैं ये जो करें सो देखते चलो बोलने की तो जगही नहीं। बादशाह ही न था । फिर भी भाई शिफारशियों का मलहर सुनते ही तो यह नौबत काहे को होती । राजा कल्याण है । तो हमहुं कहब अब ठकुर सोहाती। हसब बनारस के अधिकार के विषय में जब कौन्सिल में चर्चा टठाब फुलाउब गालू, पर हम से न होगा । भला कहां हुई तो हेस्टिंग्स साहिब ने रेजिडेण्ट न मुकरर्र हो, वे हिन्दुस्तानी सिफारशी दरवार, कहां हमसे पण्डित । कम्पनी को पटने के इलाके में मालगुजारी दिया करै । हरि संग भोग किया जा तन सों तासों कैसे जोग | क्योंकि रेजिडेण्ट मुकररी होने से वह राजा और राज्य करें।" पक्षपात नहीं है ऐसा ही है । लाखों सबूत पर अपना अखतियार जारी करने की कोशिश करेगा दे सकते पर कोई सुनै भी । हाय ! कोई सुनने | और इन से राजा के साथ उसका विवाद होने से वाला भी तो "नहीं प्रानपियारे तिहारै बिना कहो | कौनसिल में हमेशा नालिशैं आवैगी, जिसमें कि काहि करेजो निकासी दिखाऊँ" ए भाई कुछ | निस्सन्देह रेजिडेण्ट की बात पर विश्वास कर के राजा कहना भी तो भख मारना है । पासा पड़े सो दाव, राजा के बिपक्ष फैसला होगा और पश्चात् एतद्वारा उनका करै सो न्याव । कहैं जो लोग बस उस को बजा सब नुकसान होकर उनको साधारण जमीदारी की, कहिए । इन का राज गया तो क्या आश्चर्य है यह कुछ अवस्था भोगनी पड़ेगी"* सो उन्हीं रेजिडेण्ट से 16 सन् १७७५ ई. के की १२ तारीख का गवनर जेरनल की मिनट देखो। भारतेन्दु समग्र ४२०