पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/४५७

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जानते भला त्रैलोक्य में और दूसरा ऐसा कौन नगर है जीवनमात्र को देकर उसी क्षण अनेक कल्पसंचित जिसको काशी की समता दी जाय । महापापपुंज भष्म कर देते हैं। वि.प. भला कुछ वहाँ की शोभा हम भी जहाँ अधे, लंगड़े, लूले, बहरे, मूर्ख और निरुद्यम सुनें? आलसी जीवों को भी भगवती अन्नपूर्णा अन्न वस्त्रादि सु.- सुनिए, काशी का नामांतर वाराणसी है देकर माता की भांति पालन करती हैं। जहाँ भगवती जहन नंदिनी उत्तरवाहिनी होकर जहाँ तक देव, दानव, गंधर्व, सिद्ध चारण, विद्याधर धनुषाकार तीन ओर से ऐसी लपटी हैं मानो इसको शिव देवर्षि, राजर्षिगण और सब उत्तम उत्तम तीर्थ कोई की प्यारी जानकर गोद में लेकर आलिंगन कर रही हैं, मूर्तिमान, कोई छिपकर और कोई रूपांतर करके नित्य और अपने पवित्र जलकण के स्पर्श से तापत्रय दूर निवास करते हैं। करती हुई मनुषमात्र को पवित्र करती है । उसी गंगा के जहाँ मूर्तिमान सदाशिव प्रसन्न वदन आशुतोष तट पर पुण्यात्माओं के बनाए बड़े बड़े घाटों के ऊपर सकलसद्गुणैकरत्नाकर, विनयैकनिकेतन, निखिल दोमंजिले, चौमंजिले, पंच मंजिले और सतमंजिले विद्याविशारद, प्रशांतहृदय, गुणिजनसमाश्रय, ऊंचे ऊंचे घर आकास से बातें कर रहे हैं मानो | धार्मिकप्रवर, काशीनरेश महाराजाधिराज श्रीमदीश्वरी- हिमालय के श्वेत श्रृंग सब गंगा सेवन करने को एकत्र प्रसादनारायणसिंह बहादुर और उनके कुमारोपम गुमार हुए हैं । उसमें भी माधोराय के दोनों धरहरे तो ऐसे दूर | श्री प्रभुनारायणसिंह बहादुर दान धर्मसभा राम- से दिखाई देते हैं मानों बाहर के पथिकों को काशी अपने लीलादि के मिस धर्मोन्नति करते हुए ओर असत् कर्म दोनों हाथ ऊँचे करके बुलाती हैं । साँझ सबेरे घाटों पर नीहार को सूर्य की भाँति नाशते हुए पुत्र की तरह अपनी असंख्य स्त्री पुरुष नहाते हुए ब्राह्मण लोग संध्या का प्रजा का पालन करते हैं। शास्त्रार्थ करते हुए. ऐसे दिखाई देते हैं मानो कुबेरपुरी जहाँ श्रीमती चक्रवर्तिनिचयपूजितपादपीठा श्रीमती की अलकनंदा में किन्नरगण और ऋषिगण अबगाहन महारानी विक्टोरिया के शासनानुवर्ती अनेक कमिश्नर करते हैं, और नगाड़ा नफीरी शंख घटा झांझस्तव और जब कलेक्टरादि अपने अपने काम में सावधान प्रजा जय का तुमुल शब्द ऐसा गूंजता है मानो पहाड़ों की को हाथ पर लिए रहते हैं और प्रजा उनके विकट दंड तराई में मयूरों की प्रतिध्वनि हो रही है, उसमें भी जब के सर्वदा जागने के भरोसे नित्य सुख से सोती है । कभी दर से साँझ को वा बड़े सबेरे नौब्त की सुहानी धुन जहाँ राजा शंभूनारायणसिंह बाबू फतहनारायणसिंह कान में आती है तो कुछ ऐसी भली मालूम पड़ती है कि बाबू गुरुदास बाबू माधवदास विश्वेश्वरदास राय एक प्रकार की झपकी सी आने लगती है । और घाटो नारायणदास इत्यादि बड़े बड़े प्रतिष्ठित और धनिक पर सबेरे धूप की झलक और साँझ को जल में घाटों तथा श्री बापूदेव शास्त्री, श्रीवाल शास्त्री से प्रसिद्ध की परछाहीं की शोभा भी देखते ही बन आती है । पंडित, श्रीराजा शिवप्रसाद, सैयद अहमद खाँ बहादुर जहाँ ब्रज ललना ललित चरण युगल चूर्ण परब्रह्म ऐसे योग्य पुरुष, मानिकचंद्र मिस्तरी से शिल्पविद्या सच्चिदानंद घन बासुदेव आप ही श्री गोपाललाल रूप | निपुण, वाजपेयी जी से तन्त्रीकार, श्री पडित बेचनजी, धारण करके प्रेमियों को दर्शन मात्र से कृतकृत्य करते | शीतलजी, श्रीताराचरण से संस्कृत के और सेवक हैं, और भी विंदुमाधवादि अनेक रूप से अपने नाम हरिश्चंद्र से भाषा के कवि बाबू अमृतलाल, मुंशी धाम के स्मरण दर्शन, चिन्तनादि से पतितों को पावन गन्नूलाल, मुंशी शामसुंदरलाल से शास्त्रव्यसनी और एकातसेवी, श्रीस्वामी विश्वरूपानंद से यति, श्रीस्वामि जिन मंदिरों में प्रात:काल संध्या समय दर्शनीको | विशुद्धानंद से धर्मोपदेष्टा, दातृगणैकाग्रगण्य श्री- की भीड़ जमी हुई है, कहीं कथा, कहीं हरिकीर्तन, कहीं महाराजाधिराज विजयनगराधिपति से विदेशी सर्वदा नामकीर्तन कहीं ललित कहीं नाटक कहीं भगवत निवास करके नगर की शोभा दिन दूनी रात चौगुनी लीला अनुकरण इत्यादि अनेक कौतुकों के मिस से भी | करते है । भगवान के नाम गुण में लोग मग्न हो रहे हैं। जहाँ क्वींस कालिज (जिसके भीतर बाहर चारों जहां तारकेश्वर विश्वेश्वरादि नामधारी भगवान ओर श्लोक और दोहे खुदे हैं), जयनारायण कालिज से भवानीपति तारकब्रह्म का उपदेश करके तनत्याग बड़े बंगाली टोला, नार्मल और लंडन मिशन से मध्यम मात्रा से ज्ञानियों को भी दुर्लभ अपुनर्भव परम तथा हरिश्चंद्र स्कूल से छोटे अनेक विद्यामंदिर है, Re मोक्षपद - मनुष्य पशु कीट पतंगादि आपामर जिनमें संस्कृत, अंगरेजी, हिन्दी, फारसी, बंगला, BOXOM करते हुए विराजमान हैं। प्रम योगिनी ४१३