पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/४५६

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बेठन क्या । प गार सबै प. प- भाई तुम्हारे शहर सा तुम्हारा ही शहर है, झू-बे ते मत करो गप्पों के, नाही तो तोरी यहाँ की लीला ही अपरंपार है। 'अरबी फारसीं घुसेड़ देबै । भू-तोहूँ लीला करयौ । प-तुम तो भाई अजब लड़ाके हो, लडाई मोल प-क्या ? लेते फिरते हो । वे ते किसने किया है ? यह तो अपनी झू-नहीं ई जे तोहूँ रामलीला में जाथौ कि अपनी राय है कोई किसी को अच्छा कहता है कोई नाही? (सब हँसते हैं) बुरा कहता है । इससे बुरा क्या मानना । प- (हाथ जोड़कर) भाई तुम जीते हम हारे, भू-सच है पनचोरा, तू कहै सो सच्च, बुढढी तू माफ करो। कहे सो सच्च । भू- (गाता है) तुम जीते हम हारे साधो तुम जीते भाई अजब शहर है, लोग बिना बात ही लड़े हम हारे। पड़ते हैं। सु- (आप ही आप) हा ! क्या इस नगर की (सुधाकर आता है) यही दशा रहेगी ? जहाँ के लोग ऐसे मूर्ख हैं वहाँ आगे (सब लोग आशीर्वाद, दंडवत, आओ आओ शिष्टाचार किस बात की वृद्धि की संभावना करें ! केवल इस करते हैं) गं-मैया इनके दम के चैन है । ई अमीरन के मूर्खता छोड़ इन्हें कुछ आता ही नहीं ! निष्कारण किसी को बुरा भला कहना । बोली ही बोलने में इनका खेलउना हैं 1 पुरुषार्थ ! अनाब शनाब जो मुंह से आया वक उठेन भू-खेलाउना का है टाल खजानची खिदमत- पढ़ना न लिखना ! हाय ! भगवान इनका कब उद्धार हैं। करेगा!! सु-तुम्हें साहब चरिये बूकना आता है। झू- गुरु, का गुडबुड़-गुड़बुड़ जपथौ ? भू-चरी का, हमहन झूठ बोलील :, अरे सु-कुछ नाही भाई यही भगवान का नाम । बखत पड़े पर तूं रंडी ले आब : मंगल के मुजरा मिले झू- हाँ भाई, भई एह बेरा टेंटेन किया चाहिए ओमें दस्तूरी काट :, पैर दाब : रुपया पैसा अपने पास राम राम की बखत भई तो चलो न गुरू । रक्ख : यारन के दरे से झांसा बताव: । ऐ! ले सब-चलो भाई। तोही कह : हम झूठ कहथई । (जवनिका गिरती है) गं- अरे भैया बिचारे ब्राह्मण- कोई तरह से (इति गैबी ऐबी नामक दूसरा गर्भाक) अपना कालच्छेप करथें ब्राह्मण अच्छे हैं। भं-हाँ भाई न कोई के बुरे में न भले में और इनमें एक बड़ी बात है कि इनफी चाल एक रंगै हमेसा से देखी थे। तीसरा गांक गं-और साहेब एक अमीर के पास रहै से स्थान-मुगलसराय का स्टेशन इनकी चार जगह जान पहिचान होय गई । अपनी बात (मिठाईवाले, खिलौनेवाले, कुली और चपरासी इधर अच्छी बनाय लिहिन हैं। उधर फिरते हैं । सुधाकर एक विदेशी पंडित और दू-हाँ भाई बजार में भी इनकी साक बंधी है । दलाल बैठे हैं) सु-भया भया यह पचड़ा जाने दो, कहो यह नई द.- (बैठ के पान लगाता है) या दाता राम ! मूरत कौन है? कोई भगवान से भेंट कराना । भू-गुरु साहब हम हियाँ भाँग का रगड़ा वि.प.- (सुधाकर से)- आप कौन हैं। लगावत रहें बीच में गहन के मारे-पीटे ई धूआँकस | कहाँ से आते हैं । आय गिरे। सु-मैं ब्राह्मण हूँ, काशी में रहता है और आके पिंजड़े में फंसा अब तो पुराना चंड्रल । लाहोर से आता हूँ। लगी गुलसन की हवा दुम का हिलाना गया भूल ।। वि.प.- क्या आपका घर काशी ही जी में है? (परदेशी के मुंह के पास चुटकी बजाता है और नाक सु.-जी हाँ, । के पास से उँगली लेकर दूसरे हाथ की उंगली पर वि. प.-भला काशी कैसा नगर है? 'घुमाता है) सु- वाह ! आप काशी का वृत्तान्त अब तक नहीं भारतेन्दु समग्र ४१२