पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/४२०

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हैं। मसीह के छ : सौ बरस पहले बुद्र पहले पहल राजदूत राजा इंद्रदमन के अधिकार में था । सन राजगृह ही में उदास होकर चले गए थे। उस समय १२२५ में अलतिमश ने गयासुद्दीन को मगध प्रांत का इस देश की बड़ी समृद्धि लिखी है और राजा का नाम स्वतंत्र सूबेदार नियत किया । इसके थोड़े ही काल बिंबिसार लिखा है । (जैन लोग अपने बीसवें तीर्थकर पीछे फिर हिंदू लोग स्वतंत्र हो गए । फिर मुसलमानों सुब्रत स्वामी का राजगृह में कल्याणक भी मानते हैं) ने लड़कर अधिकार किया सही, किंतु झगड़ा नित्य बिबिसार ने राजधानी के पास ही इनके रहने को कलद होता रहा, यहाँ तक कि सन् १३९३ में हिंदू लोग नामक बिहार भी बना दिया था । फिर अजातशत्रु और स्वतंत्र रूप में फिर यहाँ के राजा हो गए और अशोक के समय में भी बहुत से स्तूप बने । बौद्रों के तीसरे महमद की बड़ी भारी हार हुई। यह दो सौ बड़े बड़े धर्मसमाज इस देश में हुए । उस काल में हिंदू बरस का समय भारतवर्ष का पैलेस्टाइन का समय लोग इस बौद्ध धर्म के अत्यंत विद्वेषी थे । क्या आश्चर्य था । इस समय में गया के उद्धार के हेतु कई कि बुदों के द्वेष ही से मगध देश को इन लोगों ने महाराणा उदयपुर के देश को छोड़कर लड़ने आए१ घे अपवित्र ठहराया हो और गौतम की निंदा ही के हेतु और पंजाब से लेकर गुजरात दक्षिण तक के हिंदू मगध अहल्या की कथा बनाई हो । देश में जाकर प्राण त्याग करना बड़ा पुण्य समझते थे । भारत नक्षत्री राजा शिवप्रसाद साहब ने अपने प्रजापाल नामक एक राजा ने सन १४०० के लगभग इतिहास तिमिरनाशक के तीसरे भाग में इस समय बीस बरस मगध देश को स्वतंत्र रखा । किंतु और देश के विषय में जो लिखा है वह हम पीछे | आर्यमत्सरी देव ने यह स्वतंत्रता स्थिर नहीं रखी और प्रकाशित करते हैं । इससे बहुत सी बातें उस समय पुण्यधाम गया फिर मुसलमानों के अधिकार में चला की स्पष्ट हो जायेगी। गया । सन् १४७८ तक यह प्रदेश जौनपुर के बादशाह प्रसिद्ध यात्री हिआनसाँग सन ६३७ ई. में जब के अधिकार में रहा । फिर बहलूलवंश ने इसको जीत भारतवर्ष में आया था तब मगध देश हर्षवर्दन नामक लिया था, किंतु १४९१ में हुसेनशाह ने फिर जीत कन्नौज के राजा के अधिकार में था । किंतु दूसरे | लिया । इसके पीछे बंगाल के पाठानों से और जौनपुर इतिहास-लेखक सन २०० से ४०० तक बौद्ध | वालों से कई लड़ाई हुई और सन् १४९४ में दोनों कर्णवंशी राजाओं को मगध का राजा बतलाते हैं और राज्य में एक सुलहनामा हो गया । इसके पीछे सूर अंध्रवंश का भी राज्य चिह्न संभलपुर में दिखलाते हैं। लोगों का अधिकार हुआ और शेरशाह ने बिहार सन् १२९२ ई. में पहले इस देश में मुसलमानों का छोड़कर पटने को राजधानी किया । सूरों के पीछे राज्य हुआ । उस समय पटना बनारस के बंदावत क्रमान्वय से (१५७५ ई.) यह देश मुगलों के अधीन २१०१ मील समचतुष्कोण १५५९६३८ मनुष्य-संख्या । पटने की सीमा उत्तर गगा. पश्चिम गंगा, पश्चिम सोन, पूर्व का मुंगेर का जिला और दक्षिण गया का जिला । नगर की बस्ती अब सवा तीन लाख मनुष्य और बावन हजार घर हैं । साढ़े आठ लाख मन के लगभग बाहर से प्रति वर्ष यहाँ माल आता और पाँच लाख मन लग भग जाता है। हिंदुओं में छ : जातियाँ यहाँ विशेष हैं । यथा एक लाख अस्सी हजार ग्वाला, एक लाख सत्तर हजार कुनबी, एक लाख सत्रह हजार भुइँहार, पचासी हजार चमार, अस्सी हजार कोइरी, आठ हजार रातश्त । अब दो लाख के आस-पास मुसलमान पटने के लिले में बसते हैं। १. गया के भूगोल में पंडित शिवनारायण त्रिवेदी भी लिखते हैं - "औरंगाबाद के तीन कोष अग्निकोण पर देव बड़ी भारी बस्ती है । यहाँ श्रीभगवान सूर्यनारायण का बड़ा भारी संगीन पश्चिम रुख का मंदिर है । यह मंदिर देखने से बहुत प्राचीन जान पड़ता है । यहाँ कातिक और चैत की छठको बड़ा मेला लगता है । दूर-दर के लोग यहाँ आते और अपने लड़कों के मुंडन छेदन आदि की मनौती उतारते हैं । मंदिर से थोड़ी दूर दक्खिन बाजार के पूरब और सूर्यकुंड का तालाब है । इस तालाब से सटा झुआ और एक कच्चा तालाब है । उसमें कमल बहुत फूलते हैं । देव राजधानी है । यहाँ के राजा महाराजा उदयपुर के घराने के मडियार राजपूत हैं । इस घराने के लोग सिपाहगरी के काम में बहुत प्रसिद्ध होते आये हैं । यहाँ के महाराज श्रीजयप्रकाशसिंह के. जी, आई. बड़े शूर सुशील और उदार मनुष्य थे । यहाँ से दो कोस दक्खिन कंचनपुर में राजा साहिब का बाग और मकान देखने लायक बना है । देव से तीन कोस पूरब उमगा एक छोटी सी बस्ती है, उस के पास पहाड़ के UE4 भारतेन्दु समग्र ३७६