पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/४१९

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

विकटपल्ली के राजा चंद्रदास का उपाख्यान लोगों ने | बलीपुत्र का पालीबोत्रा अपभ्रंश है, किंतु यह भी भ्रम ही इन्हीं कथाओं से निकाल लिया है। है । राजाओं के नाम से अनेक ग्राम बसते है इसमें कोई महानंद अथवा महापद्मनंद भी शुद्रा के गर्भ से था, हानि नहीं, किन्तु इन लोगो की राजाधनी पाटलिपुत्र और कहते हैं कि चंद्रगुप्त इसकी एक नाइन स्त्री के ही थी। पेट से पैदा हुआ था । यह पूर्वपीठिका में लिख आए हैं कुछ विद्वान का मत है कि मग लोग मित्र से आए कि इन लोगों की राजधानी पाटलिपुत्र थी। इस और यहाँ आकर Siris और Osiris नामक देव और पाटलिपुत्र (पटने) के विषय में यहाँ कुछ लिखना देवी की पूजा प्रचलित की । यह दोनों शब्द ईश और अवश्य हुआ । सूर्यवंशी सुदर्शन राजा की पुत्री पाटली ईश्वरी के अपभ्रंश बोध होते हैं। किसी पुराण में ने पूर्व में इस नगर को बसाया । कहते हैं कि कन्या को 'महाराज दशरथ के शाक-द्वीपियों को बुलाया' यह बंध्यापन के दु :ख और दुनाम से छुड़ाने को राजा ने एक लिखा है । इस देश में पहले काल और चेरु (चोल) नगर बसाकर उसका नाम पाटलिपुत्र रस दिया था । लोग बहुत रहते थे । शनुक और अजक इस वंश में वायुपुराण में 'जरासंध के पूर्वपुरुष वसु राजा ने बिहार प्रसिद्ध हुए । कहते हैं कि ब्राह्मणों ने लड़कर इन दोनों प्रांत का राज्य संस्थापन किया' यह लिखा है । कोई को निकाल दिया । इसी इतिहास से भुइँहार जाति का कहते हैं कि 'वेदों में जिस बसु के यज्ञों का वर्णन है | भी सूत्रपात होता है और जरासंध के यज्ञ से भुइँहारों की वही राज्यगिरि राज्य का संस्थापक है' जो लोग उपत्पतिवाली किवदंती इसका पोषण करती है । बहुत चरणाद्रि को राज्यगुह का पर्वत बतलाते हैं उनको दिन तक ये युद्धप्रिय ब्राहमण यहाँ राज्य करते रहे। केवल भ्रम है । इस राज्य का आरंभ चाहे जिस तरह | किंतु एक जैन पंडित 'जो ८०० वर्ष ईसामसीह के पूर्व हुआ हो पर जरासंघ ही के समय से यह प्रख्यात हुआ । हुआ है' लिखता है कि इस देश के प्राचीन राजा को मग मार्टिन साहब नो जरासंघ ही के विषय में एक अपूर्व नामक राजा ने जीतकर निकाल दिया । कहते हैं कि कथा लिखी है । वह कहते हैं कि जरासंघ दो पहाड़ियों बिहार पास बारागंज में इसके किले का चिन्ह भी पर दो पैर रखकर द्वारका में जब स्त्रियाँ नहाती थी तो | है । यूनानी विद्वानों और वायु पुराण के मत से उदयाश्व ऊँचा होकर उनको घूरता था। इसी अपराध पर ने मगधराज की संस्थापन किया। इसका समय ५५० श्रीकृष्ण ने उसको मरवा डाला । ई. पू. बतलाते हैं और चंद्रगुप्त को इससे तेरहवां राजा मगध शब्द मग से बना है । कहते हैं कि 'श्रीकृष्ण | मानते हैं। यूनानी लोगों ने सोन का नाम के पुत्र सांब ने शाकद्वीप से मग जाति के ब्राह्मणों को Eranobaos (इरन्नोबओस) लिखा है, यह शब्द अनुष्टान करने को बुलाया था और वे जिस देश में बसे हिरण्यवाह का अपभ्रंश है । हिरण्यवाह स्वर्णनद और उसकी मगध संज्ञा हुई ।" जिन अंगरेज विद्वानों ने | शोण का अपभ्रंश सोन है । मेगास्थनीज अपने लेख में 'मगध देश' शब्द को मद (मध्यप्रदेश) का अपभ्रंश पटने के नगर को ८० स्टेडिया (आठ मील) लंबा और माना है उन्हें शुद्ध भ्रम हो गया है जैसा कि मेजर १५ चौड़ा लिखता है, जिससे स्पष्ट होता है कि पटना बिल्फर्ड पालीबोत्रा को राजमहल के पास गंगा और | पूर्वकाल ही से लंबा नगर है । उसने उस समय नगर कोसी के संगम पर बतलाते और पटने का शुद्ध नाम के चारों ओर ३० फुट गहरी खाई, फिर ऊंची दीवार पद्मावती कहते हैं । यो तो पाली इस, नाम के कई और उसमें ५७० बुर्ज और ६४ फाटक लिखे हैं । शहर हिन्दुस्तान में प्रसिद्ध है किंतु पालीबोत्रा | यूनानी । लोग जो इस देश को (Prassi) प्रास्सि कहते पाटलिपुत्र ही है। सोन के किनारे मावलीपुर एक हैं वह पलाशी का अपभ्रंश बोध होता है, क्योंकि स्थान है जिसका शुद्ध नाम महाबलीपुर है । महाबली | जैनग्रंथों में उस भूमि के पलाशवृक्ष से आच्छादित होने नंद का नामांतर भी है. इसी से और वहाँ प्राचीन चिन्ह का वर्णन दिया गया है। मिलने से कोई-कोई शंका करते हैं कि बलीपुर वा जन और बौद्धों से इस देश से और भी अनेक संबंध १. सुदर्शन सहस्रबाहु अर्जुन का भी नामांतर था, किसी किसी ने भ्रम से पाटली को शूद्रक की कन्या लिखा है। २.जिस पटने का वर्णन उस काल के यूनानियों ने उस समय इस धूम से किया है उसकी वर्तमान स्थिति यह है । पटने का जिला २४°५८' से ५२°४२' लैटि. और ८४°४४ ' से ८६°०५ ' लौगि. पृथ्वी ol*** मुद्रा राक्षस ३७५