पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/४१४

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बरे! तुम इस बालक का मुंह देखो और हसकी रक्षा सा अनुकरण। चंदन.-अमात्य, मेरा किया तो सब निष्करा' देखकर) क्या कहा कि 'इस चंदनदास के छूटने का जानता । यह किसका मह देख के जीएगा कुछ उपाय भी है ? मला इस बेचारे के छूटने का कौन स्त्री-इसकी रक्षा कुलदेवो करेगी। बेटा! उपाय है । पर डॉ. जो यह मंत्री राक्षस का कुटुष दे दे अब पिता फिर न मिलेंगे इससे मिलकर प्रणाम कर तो टूट जाय । (पिस ऊपर देशकर) क्या कहा कि ले। 'यह शरणागतवत्सल प्राण देगा पर यह बुरा कर्म न बालक-(पेरों पर गिरके) पिता ! में आपके करेगा। तो फिर इसकी बरी गति होगी क्योंकि बचने बिना क्या करूंगा। का नो वही एक उपाय है चंदन.-बेटा, जहाँ चाणक्य न हो वहाँ (कंधे पर मूली रखे मृत्युका कपड़ा पहने चबदनदास, असना । उनकी स्त्री और पुत्र, दूसरा नाडाल आते हैं) दोनों चाडाल- (सूली खड़ी करके) अजी स्त्री.-हाय हाय ! जो हम सोग नित्य अपनी नंदनवास ! देखो, सूली खड़ी हुई अन सावधान हो बात बिगड़ने के डर से फूंक फॅकर पैर रखते थे उन्ही | जाओ ! हम शोगों की चोरों की भांति मृत्यु होती है । काल स्त्री-रोकर) लोगों, बचाओ ! अरे ! कोई देवता को नमस्कार है, जिसको मित्र उदासीन सभी एक बचाओ से है, क्योंकि चंदन.-भाइया, शनिक ठहरो। (स्त्री से) छोडि मांस मख मरन भय जियहि खाइ तून घास । अरे ! अब तुम रो रोकर क्या नन्दों को स्वर्ग से बुला तिन गरोब मृग को करहिं निरदय चाचा नास ।। लोगो जब वे लोग यहाँ नहीं है जो स्त्रियों पर सर्वदा (नारो ओर देखकर) दया रखते थे। अरे भाई विष्णुदास ! मेरी बात का उत्सर क्यों नहीं श्चांडाल-अरे वेणषेत्रक! पकड़ इस देते? हाय! ऐसे समय में कौन ठहर सकता है। चंदनास को, घरवाले आप ही रो पीटकर गले चंदन:- (आँसू भरकर) हाय ! यह मेरे सष जायगे मित्र विचारे कुछ नहीं कर सकते, केवल रोते हैं और २ चांडाल-अच्छा बजालोमक, में पकड़ता अपने को अकर्मण्य समझ शोक से सूखा सूखा मुंह है। किए आंसू भरी आँखों से एकटक मेरी ही ओर देखते चदन.-भाइयो ! तनिक ठहरो, मैं अपने चले आते है। लडके से तो मिल लूं । (लड़के को गले लगाकर और दोनों चांडाल-अजी चंदनवास ! अब तुम माया सुंचकर) बेटा ! मरना तो था ही पर एक मित्र के फांसी के स्थान पर आ चुके इससे कुटुव को विदा | हेतु मरते हैं इससे सोच मत कर । करो। पुत्र-पिता, क्या हमारे कूल के लोग ऐसा ही चंदन.- (स्त्री से) अब तुम पुत्र को लेकर करते आए है ? (पेर पर गिर पड़ता है)! जाओ, क्योंकि आगे तुम्हारे जाने की भूमि नहीं है। २ चांडाल-पकड रे बालोमक! (दोनों स्त्री.-ऐसे समय में तो हम लोगों को विदा चदनदास को पकड़ते है। करना उचित ही है, क्योंकि आप परलोक जाते हैं, स्त्री-लोगों! बचाओ रे, बचाओ! कुछ परदेश नहीं जाते । (रोती है) बंदन-सुनो, में कुछ अपने दोष से नहीं मारा राक्षस -हरो मत; डरो मत । सुनो सुनो, | जाता. एक मित्र के हेतु मेरे प्राण जाते है, इस हर्ष के चातको ! चंदनवास को मत मारना, क्योंकि स्थान पर क्या रोती है। | नसत स्वामिकुल जिन लख्यो निज चख शत्रु समान । स्त्री.-नाय ! जो यह बात है तो कुटुप को क्यों मिवतुःस ड्र में धर्यो निलज होइ जिन प्रान ।। बिदा करते हो। चंदन,-तो फिर तुम क्या कहती हो? | तुम सो हारि विगारि सब कढ़ी न जाकी साँस । स्त्री.- (आंसू भरकर) नाथ ! कृपा करके मुझे सा राक्षस के कंठ में डारहु यह उमफांस ।। चंदन. भी साथ ले चलो। अमात्य यह क्या करते हो। चंदन.- हा! यह तुम केसी बात कहती हो ? (बैग से राक्षस जाता है) (देखकर आँखों में आँसू भरकर) राक्षस- मित्र तुम्हारे सलति का एक छोटा करो, क्योंकि यह विचार कुछ भी लोकव्यवहार नहीं Home भारतेन्दु समग्र ३७० sok