पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/३६०

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खींचता है। यम.- ३ दूत- जो आज्ञा महाराज । (पकड़कर हाय रे 'अग्निष्टोमे पशुमानभेत ।' अरे बाप रे "सौत्रामण्यां सुरा पिबेत् ।" अब आप बोलिए बाबाजी. आप अपन | भैया रे "श्रोत्रं ते शुधामि ।" पापों का क्या उत्तर देते हैं। यही कहकर चिल्लाते हैं और दूत लोग उसको गंडकी. मैं क्या उत्तर दंगा । पाप पुण्य जो घसीटकर मारते मारते ले जाते है। करता है ईश्वर करता है । इसमें मनष्य का क्या दोष यम. (शैव और वैष्णव से) आप लोगों को अकृत्रिम भक्ति से ईश्वर ने आपको कैलास और बैकट ईश्वर: सर्व भूताना हृदेशे र्जुन तिष्ठति । वास की आज्ञा दी ह सो आप लोग जाइए और अपने भ्रामयन सर्वभूतानि यंत्रारूहानि मामया ।। मकृत का फल भागिर । आप लोगों ने इस धर्म में ना आज तक मज़दा अन्टा ही करता रहा । वंचकों की दशा तो देनी ही है. देखिए पापियों की यह यम.---कोई है लगे कोर दष्ट को. गति होती है और आप से सुकृतियों को ईश्वर प्रसन्न ईश्वर फल भी भगनेगा । हाय हाय. ये दाट दसरों की होकर सामीप्य मक्त देता है सो नीजिए आप लोगों को स्त्रियों को मां और बेटी कहते हैं और लबा लंबा टीका परम पद मिला । बधाई है. कहिए इससे भी विशेष लगाकर लोगों को ठगते हैं । कोई आपका हित हो तो मैं पूर्ण करूं । ४द्वत- महाराज यह किस नरक में जायगा । शै. और वै. (हाथ जोड़कर) भगवन इनसे (काई मारता है) बढकर और हम लोगों का क्या हित होगा । तथापि यह गंडकी. हाय-हाय दहाई. अरे कठी-टीका | नाटकाचार्य भरतमपि का वाक्य सफल हो । कछ काम न आया । कोई नहीं है जो इस समय निज स्वारथ का धरम-दर या जग सा होई । ईश्वर पद में भक्ति कर छा किन सब कोई । यम यह नष्ट गरव नरक में जायगा जहां खल के विष-बैनन सों मत सज्जन दुख पाई। इसका एम ही जनक धर्मवंचक मिसँग । कर जा आ छटै राजकर मेच समय पै जल बरसावें ।। मनका। कजरी मरिन सों मोडि मुख सत कविता सब कोइ' (चारों दूत चारों को पकड़कर घसीटते और मारते कह। है और चारों चिल्लाते हैं) यह कवि बानि बध-बदन में चारों- रोव सिगा प्रांटत रह ।। अं 'वैदिकी हिंसा हिमा न भात' बचावे । (सब जाने हैं) (नवानका गिरती है।). इनि चतुर्थोडकः । समाप्त प्रहसन । भारतेन्दु समग्र ३१८