पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/३५४

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हँस पड़े) राजा-चल मुझ उदंड को कौन दंड देनेवाला (पुन :) गोविन्द नारायण माधवेति । पुरो. .-- कोई वैष्णव और शैव आते हैं। विदू.-- हा फिर मालूम होगा । राजा-- चोबदार जा करके आदर से ले आओ। (वेदांती आए) (चौबदार बाहर गया. वैष्णव और शैव को लेकर फिर राजा-बैठिए। आया) वेदांती T--अद्तमत के प्रकाश करनेवाले (राजा ने उठकर दोनों को बैठाया) भगवान शंकराचार्य इस मायाकल्पित मिथ्या संसार से दोनों-- शख कपाल लिए कर मैं कर दसर तुझको मुक्त करें। चक्र त्रिशुल सुधार । विदू.-- क्यों वेदांतीजी. आप मांस खाते हैं कि माल बनी मणि अस्थि की कंट में नहीं? तेज दसोर्दािस माझ पसारं ।। वेदांती-तुमको इससे कुछ प्रयोजन है ? राधिका पारवती दिस बाम, विदु.-- नहीं कुछ प्रयोजन तो नहीं है । हमने सबै जगनाशन पालनवार । इस वास्ते पूछा कि आप वेदांती अर्थात बिना दाँत के हैं चंदन भस्म को लेप किए हरि ईश सो आप भक्षण कैसे करते होंगे। हर सबद:ख तुम्हारं ।। (वेदांती टेढ़ी दष्टि से देखकर चुप रह गया । सब लोग बंगाली महाराव शैव और वैष्णव ये दोनों मत वेदक बाहर हैं। विदु. (बंगाली से) तम क्या देखते हो ? तुम्हें| सर्व शाक्न द्विजा : प्रोक्ता न शैवा न च त्रैष्णवा : । तो चैन है। बंगाली मात्र मन्छ भोजन करते हैं। आदिदेवीमपासन्ते गायत्री वेदमातरम ।। बंगाली- हम तो बंगालियों में वैष्णव हैं। तथा --तस्मान्माहेश्वरी प्रजा । नित्यानंद महाप्रभ क संप्रदाय में हैं और मांसभक्षण इस युग का शास्त्र तंत्र हैं। कदापि नहीं करते और मन्छ तो कुछ मांसभक्षण में कते श्रत्यक्तमार्गाश्च त्रेतायां स्मृतिभाषिता: । नहीं। द्रापर वै पुराणोक्ता: कलावागमसंभवा: ।। वेदांती-- इसमें प्रमाण क्या ? बंगाली-. इसमें यह प्रमाण कि मत्स्य की विद्यासन्दर पेज न. १३ फाइल विद्या.०३ डिस्क १ उत्पत्ति वीर्य और रज से नहीं है । इनकी उत्पत्ति जल शैव-मुंह सम्हाल के बोला करो, उस श्लोक से है । इस हेतु जो फलादिक भक्ष्य हैं तो ये भी भक्ष्य का अर्थ सुनो, सर्वे शाक्ता द्विजा : प्रोक्ता : परंतु, शैवा वैष्णवा न शाक्ता : प्रोक्ता: । जो केवल गायत्री की पुगे.-- साधु-सधु ! क्यों न हो । सत्य है । उपासना करते हैं वे शाक्त हैं । 'पुराणे हरिणा प्रोक्ती वेदांती-- क्या तुम वैष्णव बनते हो ? किस मार्गो द्वौ शैववैष्णवी' । और वेदों करके देद्य शिव ही संप्रदाय के वैष्णव हो? हम नित्यानंद महाप्रभ श्रीकृष्ण बंगाली-भवव्रतधारा ये च ये च तान्समनुव्रता : के संप्रदाय में हैं और श्रीकृष्ण चैतन्य पाण्डिनश्च ते मचे सन्छास्त्रपरिन्थिन : ।। महाप्रभ श्रीकृष्ण ही हैं. इसमें प्रमाण श्रीभागवत में - इस वाक्य में क्या कहते हैं, कृष्णवर्ण विषा कृष्णं सांगोपांगास्त्रपार्षद : । शैव-- इस वाक्य में ठीक कहते हैं । इसके यज्ञे: संकीर्तनप्रायैर्यन्ति यणमेधसा ।। आगेवाले वाक्यों से इसको मिलाओ । यह दोनों वेदांती-- वैष्णवों के आचार्य तो नार है । तो | तांत्रिकों ही के वास्ते लिखते हैं । वह शैव कैसै कि तुम इन चारों से विलक्षण कहाँ से आए ? 'नष्टश्शीचा मूढधियो जटा भस्मास्थिधारिण : । अत : कलौ भविष्यन्नि चत्वार : सम्प्रदायिन: । विशन्तु शिवदीक्षायां यत्र राजा-जाने दो, इस कोरी बकवाद का क्या तो जहाँ देव सरा और आसव यही है अर्थात तांत्रिक फल है? शैव, कुछ हम लोग शुद्ध शैव नहीं । (नेपथ्य में) राजा-- भला वैष्णव और शैव मांस खाते है कि उमासहायं परमेश्वरं विभु त्रिलोचनं नीलकंठं दयालुम। toren भारतेन्दु समग्र ३१२ बंगाली चैतन्य महाप दवं सुरासवम ।। नहीं?