पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/३१८

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149.04 लोभ पदारथ चारहु को अरु समस्या- राम बिना बे-काम सभी' की पूर्ति लोक को मोह दया कै छुड़ाइए । आपुनो ही 'हरीचंद जू' रूप राज-पाट हय गजरथ प्यादे बहु बिधि अन धन धाम सभी दसो दिसि नैनन को दरसाइए । हीरा मोती पन्ना मानिक कनक मुकुट उर दाम सभी । भारी भवातप ताप तपे हिय खाना-पीना नाच-तमाशा लाख ऐश-आराम सभी । ग्रीषमै प्यारे हिमन्त बनाइए ।३ जैसे बिंजन निमक बिना त्यों राम बिना बे-काम सभी।१ दीनहूँ पै कबौं कीजै कृपा उजरी इक्कीस तोप सलामी की औअल दर्जे का काम सभी । कुटी मेरिह आइ बसाइए । क्रास बाथ इस्टार हुए महराज बहादुर नाम सभी । राखिए मान गरीबनीह्र को जग जस पाया मुलक कमाया किया ऐश-आराम सभी । दयानिधि नाम की लाज निभाइये । सार न जाना रहा भुलाना राम बिना बे-काम सभी ।२ दै अधरामृत प्रान पिया 'हरिचंद जू' यह जग मोह-जाल की फांसी झूठे सुत धन-धाम सभी। काम को ताप मिटाइये । नाटक इसमें मर पच के करते हैं जीस्त हराम सभी । मेरे दुखै सुख कीजिये पीतम जब तक दम में दम था झगड़े टण्टे रहे तमाम सभी । ग्रीषमै प्यारे हिमन्त बनाइये ।४ आँख मुंदी तब यह सूझा है राम बिना बे-काम सभी ।३ भोज मरे अरु विक्रमहू किनको ब्रह्म-ज्ञान बिचार ध्यान धारना व प्रानायाम सभी । अब रोई के काब्य सुनाइये । षट दरसन की बक बक जप तप साधन आठो जाम सभी। भाषा भई उरदू जग की अब तो योग सिद्धि वैराग भक्ति पूजा पत्री परनाम सभी । इन ग्रंथन नीर डुबाइये। प्रेम बिना सब व्यर्थ कृष्ण बलराम बिना बे-काम सभी।४ राजा मये सब स्वारथ पीन अमीरह हीन किन्हें दरसाइये । नाहक देनी समस्या अब यह समस्या-'ग्रीष्मै प्यारे हिमंत बनाइये' "ग्रीषमै प्यारे हिमन्त बनाइये" ।५ की पूर्ति समस्या- 'जीवौ सदा विकटोरिया रानी' कीजिये राई सुमेर सरीखी की पूर्ति सुमेरहि खीमि के धूर मिलाइये । राव सों रंक भिखारी सों भूपति राज मैं जाके सबै सुखसाज सिंह सो स्थान के पाय पुजाइये । सुकीरति जासु न जात बखानी । दीजिए सींग ससै 'हरिचंद जू' जो सुन्यो श्री रघुनंदन के समै सागर-नीर मिठाइ बहाइए । नैनन सों सोई रीति लखानी । कीजै हिमन्तहि ग्रीषम भीषम तार औ रेल की चाल करी 'हरिचंद' ग्रीषमै प्यारे हिमन्त बनाइये ।। जो लोगन को सुखदानी । पूरन बह्म समर्थ सबै जिय मैं यातें कह सबरे मिलिक जोइ आवै सोई दरसाइये। चिरजीवौ सदा विक्टोरिया रानी ।१ फेरिये सूरज चंद गती छिन मैं दीन भये बलहीन भये धन जग लाख बनाइ नसाइये । छीन भये सब बुद्धि हिरानी । होनी न होनी सबै करिये 'हरीचंद जू' ऐसी न चाहिये आपुके राज सीस की लीक मिटाइये । प्रजागन ज्यों मछरी बिनु पानी । कीजे हिमन्तहि ग्रीषम भीषम या रूज की तुम ही अहो बैद ग्रीषमै प्यारे हिमन्त यनाइये ।२ कहै तेहि ते 'हरिचंद' बखानी । प्रेम दै आपुनो मेटि दुखे जुग टिक्कस देहु छुड़ाइ कहैं सब नैनन आँसू प्रवाह बहाइये । जीवी सदा विक्टोरिया रानी ।२, भारतेन्दु समग्र २७६ bis