पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/३०९

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को जमुना तीर कदम की डारियाँ पहिरे चीर पटोर । । बढ़यौ बीर रस सिंधु सुहायो, डिग्यौ न राजा सबन डिगायो, बिजुली चमकै पनियाँ बरसे चादर छौले हौ घनघोर । ऐसो वीर बिलोकि सिकंदर जाइ हरि-राधा छबि देखि नयनवा सखि जुडैलें मोर ।४३ मिल्यों कर सों कर परसत १४८ सखी कैसी छबि छाई देखो आई बरसात । मोहिं पिया बिना हाय न भाई बरसात । धनि धनि री सारिस-गमनी । धन गरजत बिरह गरि मध पसरी साम मनी सारी रेसम सनि सरिस सनी । बढ़ाई बरसात। हरि मिलत न भई दुखदाई बरसात 1४४ निस मनि सम निसि धरि धरि मगमधि परी परी पग मगनि गनी । मथुरा के देसवाँ से भेजल पियरवाँ रामा । निसरी साम साध सानी गनि हरि हरि ऊधो जोगवा की पाती रे हरी । 'हरिचंद' सरिगम पधनी ।४५ सब मिलि आओ सखी सुनो नई बतियाँ रामा । हरि हरि मोहन भए कुबरी के सँघाती रे हरी । चातक को दुख दूर किया सुख दीनों सबै जग जीवन भारी। छोड़ि घर-बार अब भसम रामाओ रामा । पूरे नदी नद ताल तलैया किए सब भाति किसान सुखारी। हरि हरि अब नहिं ऐहैं सुख की राती रे हरी । सूखेहु रुखन कीने हरे जग पूरो महा मुद हलै निज वारी। अपने पियरवाँ अब भए हैं पराए रामा । हे धन आसिन लौ इतनो करिरीते भएह बड़ाई तिहारी ।५० हरि हरि सुनत जुड़ाओ सब छाती रे हरी ।४५ जय बृषभानु-नंदिनी राधे मोहन-प्रान-पियारी । रिमझिम बरसत मेह भीजति मैं तेरे कारन । जय श्री रसिक कुँवर नंदनंदन मोहन गिरिवधारी । खरी अकेली राह देखि रही सूनो लागत गेह । जय श्री कुज-नायिका जय जय कीरति-कुल-उँजियारी। आइ मिली गर लगी पियारे तपत काम सों देह । जय बृदावन चारु चंद्रमा कोटि-मदन-मद-हारी । 'हरीचंद तुम बिनु अति व्याकुल लाग्यौ कठिन सनेह।४६ जय ब्रज-तरुन-तरुनि-चूड़ामनि सखियन में सुकुमारी । मलार चौताला जयति गोप-कुल-सीस-मुकुटमनि नित्यै सत्य बिहारी । जयति बसंत जयति बूंदाबन जयति खेल सुख सुखकारी (समय कुतुबुद्दीन का राज) जय अद्भुत जस गावत सुक मुनि 'हरीचंद' बलिहारी।५२ छाई अँधियारी भारी सूझत नहिं राह कहूँ प्रगटे हरित आनंद-करत । गरजि गरजि बादर से जवन सब डराबैं । मनु आई भुव पर ऋतु बसंत । चपला सी हिंदुन की बुद्धि वीरतादि भई सब फूले गोप ग्वाल-बाल । छिपे बीर-तारागन कहूँ न दिखावें । मनु बौरि रहे बन में रसाल । सुजस-चंद मंद भयो कायरता-वास बढ़ी सब ग्वाल घरे केसरी पाग । दरिद-नदी उमड़ि चली मूरखता मनु डारन पै गेंदा सुभाग । पंक चहल पहल पग फंसावें। फैली चहुँ दिसि हरदी सुरंग । हरीचंद' नंदनंद गिरिवर धरो आइ फेर सरसों के खेत फूलन के संग । हिन्दुन के नैन नीर निस दिन बरसावें ।४७ सब के मन में अति री हुलास । मनु फूलि रहे सुंदर पलास । मलारी जलद तिताला देखत सब देव चढ़े बिमान । (समय सिकंदर का पंजाब का युद्ध) मनु उड़त बिबिध पक्षी सुजान । नट नाचत गावत करत ख्याल । पोरस सर जल रन महं बरसत मनु नाचि रहे बन में मराल । लखि के मोरा जियरा हरसत । गावत मागध बंदी प्रबीन । बिजुरी सी चमकत तरवार, बादर सी तो ललकारें, मनु बोलि रही कोकिल नवीन । बीच अचल गिरिवर सो छत्री गज चदि देवराज-सम सरसत पहिरे नर-नारी बसन हार। झींगुर से झनकत हैं बखतर, जवन करत दादुर से टरटर मनु नये पत्र-फल फूल चार । छर्रा उड़त बहुत जुगनू से एक एक कौं तम सम गरसत । सो सुख लूटत 'हरिचंद' दास । 20 स्फुट कविताएँ २६७