पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/३००

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OF ho जय प्रजा-राज्यस्थापन-करन हरन दीन भारत-विपद । अक्षय बट सम अचल कीर्ति थापक मन पावन । जय भारतबासिहि देन नव-महा-न्यायपति प्रथम पद ।१ | गुप्त सरस्वति प्रगट कमीशन मिस दरसावन । 'जय जय हिंदू-उन्नति-पथ-अवरोघ-मुक्त-कर | कलि-कलुष प्रजागत-भीति को सब बिधि मेटन नाम रट जय कर-बंधन-मंथर-कर जय जयति गुणाकर । जय तारन-तरन प्रयाग-सम जस चहुँ दिसि सब पै प्रगट।५ जय जन-सिच्छन-हेत समिति-सिच्छा-संस्थापक । जय जय सेतासेत बरन सम संमत मापक । जदपि बाहु-बल क्लाइव जीत्यौ सगरो भारत । जय राज्य धुरघर धीर जय भारत-शिल्पोन्नति-करन । जदपि और लाटनहू को जन नाम उचारत । जय परम प्रजावत्सल सदा सत्य-प्रिय जय श्री रिपन १२ जदपि हेसटिंग्ज आदि साथ धन ले गए भारी । जदपि लिटन दरबार कियो सजि बड़ी तगारी राजतंत्र के पंडित तुम जानत प्रयोग खट । पै हम हिंदुन के हीय की भक्ति न काहू सँग गई। स्तंभन कीनो राज-बाक्य कटि अटल नीति अट । सो केवल तुमरे संग रिपन छाया सी साथिन भई ।६ जन-दुख-मारन उच्चाटन दैविद भाव जग । विद्वेषण स्वारथी मिलित दल मद न्याय मग । शिवि दधीच हरिचंद कर्ण बलि नृपति युधिष्ठिर । आकर्षण मन सब जनन को निज उदार गुण प्रगट-कर । जिमि हम इनके नाम प्रात उठि सुमिरत है चिर । जय मोहन मंत्र समान निज वाक्य विमोहित देशवर ।३ तिमि तुमहू कहं नितहिं सुमिरिहें तुव गुन गाई । यासों बढ़ि अनुराग कहो का सकत दिखाई । मारत-नव-उदित-रिपन-चंद्रमा मनोहर । हम राजमक्ति को बीज जो अब लौ उर अंतर धरयो । शुक्ल-कृष्ण-सम तेज तदपि जस अपजस विधि कर । निज न्याय-नीर सों सोंचि के तुम बामै अंकुर कर्यो ।७ जस-चंद्रिकी विकासि प्रकास्यो उन्नति मारग । वाक्य अमृत बरसाइ किए आल्हादित नर जग । निज सुनाम के बरन किए तुम सकल सबहि बिधि ! ससअंक बगबिल सो लसत जन-मन-मुकुद प्रफुल्लतर। | रिपु सब किए उदास दई हिय राजमक्ति सिधि । सत्ताइस रैन प्रकास सम सत्ताइस शुभ कर्म कर 18 महरानी को पन राख्यो निज नवल रीति बल । परि मघ न्याय-तुला के नप राख्यौ सम दुहुँ दल । जय तीरथपति रिपन प्रजा अघ-शोक-बिनाशक । सब प्रजापुज-सिर आपको रिन रहिहे यह सर्व छन । गंग-जमुन-सम मिलित तदपि जान्हवि मरजादक । तुम नाम देव सम नित जपत रहिह हम हे श्री रिपन 1८ जय 61EUR OSTERUL LETT यह सन १८६१ ई. से १८६५ ई. तक भारत-सचिव रहे और फिर कई पदों पर रहकर सन् १८८० ई. में भारत के बाइसराय हुए । इनके समय में सन १८८१ ई. में वर्नाक्युलर प्रेस एक्ट समाप्त किया गया । सन् १८८१ ई में मैसूर राज्य उसके राजवंश को सौंप दिया गया । एलबर्ट बिल भी इन्हीं के समय में प्रस्तावित हुआ । अफगान युद्ध का अंत इन्हीं के समय में हुआ और अब्दुर्रहमान काबुल के अमीर हुए । लार्ड रिपन अराज कर्मचारी शिक्षित भारतीयों को राज्य-प्रबंध के संपर्क में लाने का सदा प्रयत्न करते रहे और इन्होंने स्थानिक स्वयत्त शासन के लिए कई नये नियम बनाए थे । इन्ही कारणों से यह भारत में विशेष सम्मानित हुए थे । सन् १८८४ मे वे विलायत लौट गये । भारतेन्दु समग्र २५८