पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/२९२

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बसंती । बस कार यही तो सहरो शाम है मेरा । [ गजल शुतुरमुर्ग परी की शुरफा व रुजला एक है दरबार में मेरे । बहार के मौसम में] नहीं खास नहीं फैज तो इक आम है मेरा। बन जाएँ जुगत तब तो उन्हें मूड ही लेना । आमद से बसन्तों के है गुलजार बसंती । खाली हौं तो कर देगा देना धता काम है मेरा । फर्श बसंती दरो-दीवार बसंती। जर मजहयो मिल्लत मेरा बन्दी हूँ मैं जर की। आँखों में हिमाकत का कँवल जब से खिला है। जर ही मेरा अल्लाह है जर गम है मेरा ।४ आते हैं नजर कूचओ बाजार अफयूँ मदक चरस के व चण्डू के बदौलत । [छन्द जवानी शुतुरमुर्ग परी] यारों के सदा रहते हैं रुखसार बसंती। राजा बन्दर देस मैं रहें इलाही शाद । दे जाम मए गुल के मये जाफरान के । जो मुझ सी नाचीज को किया सभा में याद । दो चार गुलाबी हो तो दो चार बसंती । किया मभा में याद मुझे राजा ने आज । तहवील जो खानी हो तो कुछ कर्ज मँगा लो, दौलत माल खजाने की मैं हूँ मुहताज । जोड़ा हो परी जान का तय्यार बसंती ७ रुपया मिलना चाहिये तख्त न मुझको ताज । [ होली जबानी शुतुरमुर्ग परीके] जग में बात उस्ताद की बनी रहे महराज ।५ पा लोगों कर जोरी भली कीनी तुम होरी । [ ठुमरी जवानी शुतुरमुर्ग परी के] फाग खेलि बहु रंग उड़ायो और धूर भरि झोरी । आई हूँ मैं सभा में छोड़ के घर । धुंधर करो भली हिलि मिलि के अंधाधुध मचोरी । लेना है मुझे इनआम में जर । न सूझत कछु चहुँ ओरी। बुनिया में है जो कुछ सब जर है । बने दीवारी के बदुआ घर लाइ भली बिधि होरी । लगी सलोनो हाथ चरहु अब दसमी चैन करोरी । बिन जर के आदमी बन्दर है। सबै तेहवार भयो री । बन्दर जर हो तो इन्दर है। जर ही के लिये कसबो हुनर है । (फिर कमी) विजय-बल्लरी रचना काल सन् १८८१ अहो आज आनंद का भारत भूमि मंझार । नाटक अरु उपदेश पुनि समाचार के पत्र । सबकै हिय अति हर्ष क्यों बाढ्यो परम अपार ।१ कारामुक्त भए कहा जो अनंद अति अत्र ।५ आर्य्य गगन कों का मिल्यौ जो अति प्रफुलित गात । के प्रतच्छ गो-बधन की जवनन छाँडी बानि । सबै कहत जै आजु क्यों यह नहि जान्यौ जात ।२ जो अब आयं प्रसन्न अति मन महँ मंगल मानि । सबके मन संतोष अति सबके मन आनद । कहा तुम्हें नहिं खबर खबर जय की इत आई। सबही प्रमुदित देखियत ज्यों चकोर लहि चंद ।३ | जीति देस गन्धार सत्रु सब दिये भगाई ७ कहा भूमि-कर उठि गयौ कै टिक्कस भो माफ । सब औगुन की खानि अयूब भज्यो असु लेकै । जनसाधारन को भयो किधौं सिविल पथ साफ ।४ प्रविसी सैना नगर माहि जय डंका दैक। भारतेन्दु समग्र २५०