पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/२५९

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आज जगे तुव भाग फिर मानहुँ मन अति मोद ३६। रह्यो रुधिर जब आरज-सीसा । "करि आदर मृदु बैन कहि बहु बिधि देहु असीस । ज्वलित अनल समान अवनीसा । चिर दिन लौ सिसु-मुख साहस बल इन सम कोउ नाहीं । लख्यौ नहिं तुम सोइ अवनीस।३७ जवै रहयो महि-मंडल माहीं ।५१ सेज छोड़ि माता उठहु उदित असन तुव देस । जब मोहिं ये कहि जननि पुकारै । मिटे अमंगल तिमिर सब राजकुमार-प्रबेस ३८ दसहू दिसि धुनि गरज न पारे। मति रोओ रोओ न तुम जननी व्याकुल होय । तब मैं रही जगत की माता । उठहु उठहु धीरज धरहु लेहु कुँअर मुख जोय ।३९ अब मेरी जग में यह बाता ।५२ तुम दुखिया बहु दिनन की सदा अन्य आधीन । लखिहे का कुमार अंब धाई । सदा और के आसरे रहो दीन मन खीन ।४० गोद बैठि हँसिह इत आई । तुम अबला हत-भागिनी सदा सनाथ दयाल । जब पुकारिहै कहि मोहिं माता । जोग भजन भूली रहत सूघे जिय की बाल ।४१ आनंद सों मरिहों सब गाता ।५३ सो दुख तुमरो देखि महरानी करुना धारि । निज प्रानोपम पुत्र तुव ढिग पठयो मनुहारि ।४२ / युरप अमरिका इहिहि सिहाहीं । रिपु-पद के बहु चिन्ह सब कुंअरहिं देहु गिनाय । भारत-भाग-सरिस कोउ नाहीं । काढ़ि करेजो आपनो देहु सुतहि दिखाय ।४३ | पूर्व सखी मम रोम पिआरी । सदा अनादर जो सहयो सयो कठिन रिपु-लात । मरिकै बाँचि उठी फिरि बारी ।५४ सो छत देहु दिखाय अब करहु कुंअर सों बात ४४ : ग्रीसह पुनि निज प्रानन पायो । हाय अकेली हमहिं बनायो । उठहु फेर भारत जननि हवै प्रसन्न इक बार । लेहु गोद करि नृप कुँअर भयो प्रात उँजियार ।४५ भग्न दंड कंपित कर-धारी । कब लौं ठाढ़ी रहौं दुखारी ।५५ शाखा भग्न सकल भूषन तन साजी । सुनत सेज तजि भारत माई। दास-जनिन कहवैहौं लाजी। उठि तुरतहि जिय अकुलाई । मेरे भागन जो तन हारे। निविड़ केस कोउ कर निरुआरी । थाप्यो पद मम सीस उधारे ।५६ पीत बदन की क्रांति पसारी ।४६ आरंभ भरे नेत्र अंसुअन जल-धारा । सुनि बोली आरत-जननि आये कहा कुमार । लै उसास यह बचन उचारा । आये किन आओ निकट पुत्र जननि-अंकवार ।५७ क्यों आवत इत नृपति-कुमारा । रहत निरंतर अंतरहि कठिन पराजय-पीर । भारत में छायो अँधियारा ४७ आवो सुत मम हृदय लगि सीतल करहु सरीर ।५८ कहा यहाँ अब लखिबे जोगू । लेहु माय कहि मोहिं पुकारी । अब नाहिंन इत वे सब लोगू । सोह भावन जिमि निज महतारी । जिन के भय कंपत संसारा । सत संबत लौ रहयौं अधूरी । सब जग जिन को तेज पसारा ।४८ करौ न आज भाव सोइ पूरी ।५९ रहे शास्त्र के जब आलोचन । रहे सबै जब इत षट-दरसन । अतिहि अकिंचन भारत-बासा ! भारत बिधि बिद्या बहु जोगू । अतिहि छीन हिंदुन की आसा । नहिं अब इत केवल है सोगू ।४९ / भूलि बृटिश बल धारि सनेह । सो अमूल्य अब लोग इतै नहिं । भारत-सुतन गोद करि लेहू ।६० कहा कुँअर लखिहै भारत महि । कहि कृष्ण इन्हें मति तुच्छ करौ । रहै जबै मनि क्रीट सकुंडल । नहि कीटहु तुच्छ बिचार धरौ । रह्यो दंड जब प्रबल अखंडल ।५०। इनहूँ कहें जीवन देह दया । छोटे प्रबंध तथा मुक्तक रचनायें २१९