पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/२३६

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मुख चूमत है अलकन टारी । 'हरीचंद' अब मान न करिये 'हरीचंद' दोउ प्रीति-बिबस लखि यह-विनती लीजै मन मानी ।१२ आपुन-पौ कीनो बलिहारी ।१५ हे देवी अब बहुत भई। सखियन निज बेस उतारौ । | यह वरदान दीजिए हमको कछु मत कीजै आजु नई । | धाई सबै चारहु दिसि सों अब कबहूँ अपराध न करिहौं तुव चनन की सपथ करों । कहत बधाई तन मन वार्यो । छमा करौ हौं सरन तिहारी त्राहि त्राहि वह दीन खरौ । कोउ लाई सज्जा कोउ बीरी कोउन सयौनजात बिरह यह कहिके नैनन में हरि नीर भरे । चंवर मोरछल ढार्यो । 'हरीचंद' बेबस वै के श्री राधा जू के चरन परे ।१३ | कोउन गाँठि जोरि के दोउ को देखि चरन मैं पीतम प्यारो । एक पास लेके बैठायो । छुटि गयो मान कपट कछु जिय में दूलह बन्यो पियारो राधा रह्यो छवा को नाहिसँभारो। दुलहिन को सिंगार सँवार्यो । वाई उठाइ लियो मुज भरिकै 'हरीचंद' मिलि केलि बधाई नैनन नीर भरयो नहिं द्वारो । गावत अति जिय आनंद धार्यो ।१६ तन कंपत गद्गद् मुख बानी चिरजीओ यह अविचल जोरी । कयौ न कछु जो कहन बिचारो। सदा राज राजौ वृंदाबन नंद- | रहे लपटाइ गाढ़ भुज भरिकै नंदन वृषभानु-किशोरी। छूटत नहिं तिय हिए पियारो । देत असीस सबै बुज-जुवती 'हरीचंद' यह सोभा लखि के करत निछावरि मनि-गन छोरी । अपनो तन-मन- सहजहि वारो ।१४ आरति बारत धीर न धारत रहत रूप लखि के उन तोरी । पूछत लाल बोलि किन प्यारी। क्यों इतनो पाखंड बनायो कुंज-महल पधराइ लाल को हटी ठग्यौ बड़ो ठगिया बनवारी । सबै बृज-बासिनि गोरी। प्यारी कह्यो तुम्हारेहि कारन मिलि बिलसत दोऊ अति सुख सों 'हरीचंद' छबि भाई को री ।१७ प्यारे श्रम यह कीन्हो भारी । यह रस वृज में रहो सदाई । | तुम बहु-नायक मिलत कहूँ नहि ताही सों यह बुद्धि निकारी । जो रस आजु रहयो कुंजन मैं छदम-केलि-सुरु पाई । प्रम भरे दोउ मिलत परस्पर नित नित गाओ री सब सखियाँ मोहन-केलि-बधाई । | 'हरीचंद' निज बानी पावन करन सुजस यह गाई ।१८ भारतेन्दु समग्र १९६