पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/२००

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रूप प्रकट छबि नयन निहारी । 'हरीचंद' सर्बस बलिहारी ।१०२ ढाढ़ी चलो आज घर नंद महर के प्रम-बधाई गावै । भादों कृष्ण अष्टमी दिन श्री कृष्णचंद्र-जस गावै । तोरन तनी पताका द्वारन भवन मीर भइ भारी । रीवादिन कर पगन समेटे चलियो भवन मैंझारी । जहाँ इंद्र चंद्रादि-देवता कर बाँधे हैं ठाढ़े। कौन सुनैगो आज हमारी प्यारी कर हित गाढ़े । प्रम-पंथ को पग है न्यारो ताते मन यह आवै । 'हरीचंद' लखि लाल लड़इतो नव निधि रिधि सिधि पावै ।१०३ जसोदा माई लेहु हमारी बधाई । धन्य भाग तेरे सुनु प्यारी जनम्यो कुंवर कन्हाई । चिरजीवो जब लौं जमुना-जल गंगा-जल सब देवा। जब लौ धरा अकास और है जब लौ हरि की सेवा। तबलौं चिरजीवो जग भीतर 'हरीचंद' तबलाला। मंगल गीत विनोद मोद मति मंगल होइ रसाला ।१०४ हिंडोला रायसा झूलत राधा रंग भरी कुंज-हिंडोरे आज । संग सब सखी सुहावनी साजे सुंदर साज । झूलन आये मोहन सुंदर मदन मुरारी । गावत ऊंचे सुर भरि संग मिलि ब्रज की नारी । ताल मुरज डफ आवज साथ पखावज चंग । बाजत लय सुर साजत बीना और उपंग । बिच बिच बंसी गूंजत मधुर मधुर घन-घोर । धुनि-सुनि जासु कोइलियन तरुन मचाई रोर । इक उतरत इक मूलत एक चढत तहँ धाय । एक रहत गहि डोरी दूजी देत मुलाई । इक नाचत इक गावत एक बजावत ताल्। एक जुगल छबि लखि कै तन-मन डारत वार । रमकनि मैं रंग बाढ़यो छबि कछु कही न जाइ । भोंटा लगि रहे डारन बिबिध बसन फहराइ । सोभा को कहि भाषै मूलत बाढ़ी जौन । 'हरीचंद' लखि लखि के कवि-मति रसना मौन ।१०५ बिहाग नाचति बरसाने की नारी । जिनके घर प्रकटी श्री राधा मोहन-प्रान-पियारी । नाचत शिव सनकादि मुनीश्वर नारदादि ब्रतधारी। नाचत वेद पुरान रूप धरि डारत तन-मन वारी । अति आनंद बढ्यो बरसाने प्रकटी श्रीवृषभान-कुमारी । 'हरीचंद' आनंदित अति मन होत निरखि बलिहारी ।१०६ नंद बधाई बाँटत ठाढ़े। मई सुता बाबा भानुराय के प्रेम-पुलक तन बाढ़े। काहू का सोना काहू को रूपा काहू के मनि-गन दीनो । जिन को माँग्यो तिन सो पायो कयो सबनि को कीनो ।। काहु को धेनु बसन काहू को दियो सबनि मन-भायो । आनंद भयो कहत नहिं आवै 'हरीचंद' जस गायो ।१०७ नागरी मंगल रूप-निधान । जब तें प्रकट भई बरसाने छायो आनंद महान । दिन दिन सुख उमड़त घर घर में छन छन होत कल्यान । 'हरीचंद' मोहन की प्यारी राधा परम सुजान ।१०८ मलार पिय बिन बरसत आयो पानी । चपला चमकि चमकि डरपावत मोहिं अकेली चानी। कोयल कूक सुनत जिय फाटत यह बरषा दुखदानी । 'हरीचंद' पिय श्याम सुंदर बिनु बिरहिनि भई है दिवानी ।१० सारंग ब्रज-जन कांवर जोरि जोरि । आये मन-भाये ले दधि घृत निज निज गृह तें दौरि दौरि । गोपी आई गीतन गावत पाई परत मुर लोरि लोरि । करत निछावरि देखि प्रिया-मुख तन के भूषन छोरि छोरि । दधि-काँदो माच्यो आँगन में देत माठ सब फोरि फोरि । लूटत झपटत खात मिठाई वारत छिन में कोरि कोरि । गिनत न कोऊ काहू को कछु पट भूषन दै तोरि तोरि ook** भारतेन्दु समग्र १६० छोटे पाठ