पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१९९

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'हरीचंद' यहत दीनों दान तहाँ बुलाय ।२७ कीरति के कन्या जायी यह सुख सो कहि डोलें। आनेद-मगन गनत नहि काहू माठ दही के रोते। 'हरी' को देत बधाई भक्ति मन मोले १८ APOON गाथै सबै बधाय धान। परज ore आनंद भरे करत होतूहल आधा यंत्र बजाय जाय ।। परी भान बजेले रंग वधावना । गोपी आई मंगल कर ले कुमकुम मुरून लगाय गाय । 'कीति-उदर-उदगिरि प्रगट्यो भावभुद चद्र सोहावना । श्री-मखालचिनयत सषही नवनन नही बलाय लाय। आज सुफल भयो नंद महोत्सव नर-नारी मिणि गाधना। रावल-गली सुगधिन धिरकी 'हरीषद' वृषभान वा सो प्रेम बधाचो पावना ।९४ बहु विधि वसन विद्धाय छाय । सारंग 'हरीनंद' सोभा लखि सुर नभ कुंज कुंज स्थ डोले मदन मोहन जू को तिय सब रहीं शुभाय भाय ।१९ श्वेत वजा सामें उडि उडि सोहे। यथा-सचि तैसोई सपन धन छाव रहेट नभ गोकल प्रकटे गोकुलनाथ । बीच देखतीमनमव-मन मोहे । प्रमुदित आता गोवदन जमुना दोरत में फरहरत पीताम्बर सब अपवासी क्रिये सनाच ।। मनु मिनि वन नाचे। इक गावत इक ताल बजावत हक श्वेत ध्यजा पग-पाँति छांव कछ कहि न नाचत गहि गहि के हाथ । जात निरखत अति मन आनंद राने । | एक वसन पट देत बधाई दम दम कुज कृत बन बन इक लावत वसि चंदन मात्र । तीर तीर घूमत रथ फिरि आये। आनंद उमगे गनत न काहू 'हरीनंद' अलि जाय छनि देखि सुख बाल बुद्ध सब एकहि साथ । पाय तन मन धन सब वारिकै खुटावै ।९५ 'हरीचंद' सुर फूशन बरषत बिहाग सुक नारद गायत गुन-गाय ।१०० गावत रंग-वधाई सब मिलि गावत रंग-बधाई। परज औरति के प्रकटी श्री राधा मोहन के मन भाई। घर पर आयु अधाई बाजे। नर-नारी सब मिलि के आई गावत गीत सुहाई। टीको लै आति ब्रज-बनिता कीरति को घर राजै । 'हरिचंद' कछु उस वरनन करि बहुत निझापरि पाई ।९६ इक गावत इक करत कोलाहल मनु पायो है राजे । राइसा 'हरीचंद' पि कहि नहिं आवै गायो सखि मंगलचार अधायो अपभानु की । कवि-मति या धन लाजै ।१०१ सुनि चली गृह गृह ते साजनि सबै सजाय । यथा-सचि वरनि छवि कछु कहि न आये चंद उदय भयो आय । नंद्रभानु घर बजत बधाई। भयो अति आनंद तेहि छन कस्यो कापे जाय । श्री चंद्रावलि ब्रज प्रकटाई। ग्वाल नाचें तारि दे दे देत बहुत बनाय । हरित भये तरू पल्लव गोभा एक गावत एक नाचत एक परसत पाय । कुव-भवन बाढ़ी अति शोभा । गारि देत विषाय सब को सुख कयो नहिं जाय । बोलि उठे कल बोकिल कीरा सब फोऊ बधाई रतन बसन सुटाय । डोशी तिहि मन त्रिविध समीरा । कि भये कुषेर भानहु दान पाइ अधार्य । उनये वन मनु आनंद छायो भयो जोन अनंद तेहि छन कौन पे कहि जाय । इंदुभी बनायो । भादौ सित पंचमी सुहाई। सारंग स्वाती सोम पहर निसि आई। ग्याल सब हेरि हेरि बोले । नंद्रकला की कोख सिरानी। चंद्रावलि प्रकटी सुखदानी। गुप्त भेद नहि क प्रगटायो । सो श्री विठ्ठल प्रकट लखायो । गरचि वर्षा विनोद १५९