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हरषि सुमनन

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तुरंग योजित चलत पथ सुपथ । एक रूप दोउ एक बयस दोउ दोऊ चन्द्र-चकोरि । फहरत ध्वज उड़त नव पताका परम कलस 'हरीचंद' जब लौं ससि-सूरज तब लौं जीयो जोरि ।२५ कल इन्द्र सम सकल चमकत अकथ । व्याहुला, यथा-सचि चक्र ता पर रह्यो तासु तल वायु सुत बिनत चलो सखी मिलि देखन जैये दुलहिन राधा गोरी जू । बिनता-सुअन गर्राज अरि खम कूबर छन्न चास डाँडी चास विविध कोटि रमा मुख-छबि पै वारौं, मेरो नवल किशोरी जू । मनि-टित उर्धारत बेद शब्द कथ । घंघरी लाल जरकसी सारी सोंधे भीनी चोली जू । भाँझ झनकत करत घोर घंटा घाट घने मरवट मुख में शिर पै भौंरी मेरी दुलहिया भोली जू । धुंघरू थिरत फिरत मिलि एक जथ । नकबेसर कनफूल बन्यो है छबि कापै कहि आवै जू । झुखी सूरज-मुखी सूखी लखि जन दुखी अनवट बिछिया मुंदरी पहुँची दुलह के मन भावै बू । दैत्य-दल झलमलत झालरन मुक्त तथ । ऐसी बना-बनी पैरी सखि अपनो तन मन वारी जू । बैठि दारुक तदारुक करत अश्व को चलत सब सखियाँ मिलि मंगल गावत 'हरीचंद' बलिहारी जू।२६ मन बेग-सम वेर्गात शब्द नथ । श्रीस्वामिनी जी की बधाई देव-ऋषि करत जय-शब्द मुरहल दरत सूत बंदी विरत कहत बह भौति गथ । चली बधाई गावन के हित सुंदर बृज की नारी । कित 'हरिचंद' दृग सरस सोभा निखर अंचल उड़त हंस गति चंचल कर ले मंगल थारी । लयो चारो अरथ ।२९ पीत बसन कटि कसन रसन छबि रसनि कहाँ किमि गाई दामिनि पै संध्या-धन तापै फिरि दामिनि लपटाई । बाल लीला, यथारूचि नूपुर रुनित झनित कंकन कर हार चुरी मिलि बाजे । छोटो सो मोहन लाल छोटे-छोटे ग्वाल बाल मनु आनंद भरि सब तन भूषन गाजत साजत राजै । छोटी-छोटी चौतनी सिरन पर सोहैं । चौमुख चारु दीप थालन पर मंगल साज सजाई । छोटे-छोटे भँवरा चकई छोटी-छीटी लिये मनहूँ सनाल कमल पर कमला कनक-लता चढ़ि धाई । छोटे-छोटे हाथन सों खेलें मन मोहें । धावत खसत सुमन बेनी तें उपमा कह कवि हारे । छोटे-छोटे चरन सों चलत घुटुरुवन मनु कोमल पग गौनि चुकरगन फूल पाँवड़े डारै । ची ब्रज-बाल छोटी-छोटी छवि जोहैं। ऊँचे सुर गावत छबि छावत बरसावत रस भाई । 'हरीचंद' छोटे-छोटे कर पै माखन लिये इक सों इक बढ़ि अतिहि उतायल कीरति-मंदिर आई। उपमा बरनि सके ऐसे कवि को हैं ।३० निरखत मुख सुख अत हिय बाढ्यो वारि सुनत मन दीनों। आज सखी नंद के घर को सुख साँच बिधाता कीनों । आशिष, बिहाग नाचत मुदित करत कौतूहल गावत दे कर-तारी । जुग जुग जीवो मेरी प्रान-प्यारी राधा । 'हरीचंद' आनंदमय आनंद जुगल इकत्र निहारी ।२७ जब लौं जमुन-जल रबि ससि नभ थल बिहार, केदार तब लौ सुहाग लही सुजस अगाधा । नित नित रूप बाढ़ो परस्पर प्रेम गाढ़ो चले दोउ हिलि मिलि दै गल-बाहीं । नवल बिहार कार हरौ जन-बाधा । | फैली घटा चहूँ दिसि सुन्दर कुंजन की परछाहीं । 'हरीचंद' दै असीस कहत जीओ लख बरीस । अपने कर पिय श्रम-जल पोंछत प्यारी कह नहिं नाहीं। तुम्हरे प्रगट भये पूरी सब साधा ।३१ 'हरिचंद' बिजन डोलावत श्रम लखि विधि हरि आदि सिहाहीं ।२८ गणेश चतुर्थी को पद, राग यथा-रुचि रथ-यात्रा, सारंग जय जय गोपी गणेश वृंदावन चिंतामनि ऋद्धि-सिद्धि दायक ब्रजनाथ प्रान-प्यारे । जावल या चित्रित बिचित्रित परम बनिता कुच-मोदक गहि बार-बार केलि-करन जगत-विजयी जयति कृष्ण को जैत्र रथ । प्रिया-बेनिका-भुंजग हस्त-कंज धारे अति तरलतर बलाहक शैव्य सुग्रीव मनिपुष्प मान-समय पद परसत अंकुसादि चिन्ह लसत 1 भारतेन्दु समग्र १३६