पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१५५

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WOX 5. यवाशक्ति कीन्हों सबही ने समधिन को उपचार । बधाको रुख चाहत त्रिभुवन में सुर मुनि नर-भय पागे ज। साधन चू ने बहुत करायो आदर शिष्टाचार । बच जोरि सो अरज करत है राधाबू के आगे कू। समधिन की तो चुपरी नपरी चोटी सोचो लाय । वेद-मंत्र पढ़ साधि करम-विधि यज्ञ करत हि लागी । सौधन को लाख रपट परत है समधी को मन धाय । ताको मुख मॉडल केशरि सोअज-युवती रस-पागी । साधन की तो अनिहि चिकनी | यह अवर्गात गति लखि न परत कह देव विमानन भूले । फिसिल फिसिप सब जात । मोहे फिरत सार नहिं जानत तक कॉल-सुख फूले । दहरया रंग भनि रही जाई विसत सबै घरात । |रमा पलोटत चरन सरस्वति गुन-गन गाइ सुनायै त्रु । सबै उड़ायत सचिन को लांख बुक्का रंग मस मीजि। | ताके पद नूपुर है गोपी निज सुख नाच नचावै जू । तब सौधन की चुवन लगत है सारी रंग मुख भत्रि । बरनौ कहा बरांन नहिं आवै का समुझे जो गाजै । याती मीत सब साधन कर रूप-छटा सब देखि । वल्लभ-बल 'हरिचंद' कहक सो बल्लभि-जन-रायपू ।३९ डारत अनर जगाइ अरगजा गिली साधन लेखि। साधन जू लगवापत डोलत सव सों चोषा रंग । सिंधुग धमार फटी दरार परी साधन की चोलो उमिर उमंग । हमें लाख श्रावत क्यों कतराये । साधन विपरीत करत तुम इती नयन नहि योग । साफ कहत किन जिय की चालत जो मानत तुमहरी नपह सों बांड थाप सबै ब्रज लोग । सो छांह मिलाये। फैलि राही चाई दिशि सौधन की कीति की नव नि। होरी में का परजोरी करोगे क्यों इसने इसराये । तुहि देखि सब करत रंग सो होरी रसिक सिनि । रूप गरव फागुन मनमाने ताह पै ति रांसकाये । अहो होत तुहि देखत ही आदर हित दरबार । जो तुम चाहत सो न इतै कछु चलो राही न लगाये। गाँव भर की नारि तुहि इक दर देत अपार । 'हरीनंद' तुम्जर व्यववारन दर्राह से फल पाये 180 हि विधि साधन रंग बढ़त ब्रज कोन सके सो गाय। होरी के पूजन को पद नित लह नित र लाहन पैजन 'हरीनद' वलि जाय।४३ भाजु हरि खेलत रस-भरि सँग तृणभान-किसोरी । जोवन केसे छिपाङरी सिया परो पाछे पूनो निसि उहा यारी बाँह बाँह में जोरी । भालकत तन दति सारी सो काढ़ नगत तमासो गाऊँरी। चादन में गुलान की चमर्कान अरु बुक्कन की भोरी। मुखससि चमक नील पूंघट में ज्यो त्यो सनि चराऊँरी। जमुना तीर श्वेत आरूधि अत शोभित भई होरी । ये उकसौहें अंचल बाहर इन कहं कहाँ दुराउरी । इत सब सखा खेल बोराने उत मदमाती गोरी । बचमारे बिधि क्यों सिरजे ये कहा कर कित जारी अदभुत छवि हरिचंद' देखि कै रहयौ हरष सून तोरी४१ हरीचद गोकल मे बसिके पतिव्रत कैसे निभाऊँरी ४४ यहि बिधि सिरजे नाहि री तेरे जोबन दोक। रहे दुरे किन ये सिस्ता में जो अब प्रगट विवाहिरी । बने हो जरा यह बदनाम फाग है। उमगे परत हरत मन हरि को कचाक मेन समाहिरी। आँखों की भी हमसे तुमसे खाग है। 'हरीचंद निधि मदन धरी निज इस ब्रज का ता भी नवाई गोग है इनाह संपुर्टान माहिरी ४५ आँस लगाना या बड़ा एक भोग है राग काफी मेरी तुमरी प्रीति बहुत मशहूर है तिसमें भी होरी रंग चकनाचूर है। गिरिधर लाल रंगीले के संग आयु फाग ह्रौं खेलोंगी । लगी आंस भी इटी अब तक सास ननन अरु गुरुजन की भय लाहिं पायन ठेलोंगी। करो लाख तदधीर यहाँ क्यों हि सभी । नोचा नंदन अबिर अरगजा पिचकारिन रंग झेलोंगी । उतरे जी के साथ यह अजब बमार है। 'हरीनंद वन-नद पिया के कंठ भुजा गहि मेलोगी।४६ 'हरीनंद' बचना इससे दुशवार है।४२ रामकली ठेका धमार समधिन मधुमास कहत हौ बार करोरन होह चिरंजी नित होरी में साधन आई। नित प्यारे देखि सिरावे हियो । अहो फागुन त्योहार मनाई। एक एक सिख सो मेरे अब घरब जग जियो होली ११५