पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१५०

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-t20K ब न बन में व्याका फिरे हो सुंदर बन की ग्राम । | कोन देस में आयो। जोगिया । तनक बाँस की बाँसुरी हो नेत जो तुम हाथ । होरी काफी व्याकुल भावे देव-वधू ताज अपने पति को साथ । नहीं कहा ज में अनोखी भई। सुर-नर-मुनि-मन-मोहिनी हो मोहन तुमरी तान । कान नहि काहू की करत दई । जमुना जू बहिनो तजें कि टरत न देव-विमान । जानत नहि कछु चाल यहाँ की आई अाह नई। जड़ चेतन होइ जात है चैतन बड़ बोइ जात । मोहन मिलहि जान परंगी भूगोगी संबई। जो इन सब की यह दसा नो अबलन की का बात । टैन विनार संसक होरी को नीनं मखा कई। उठि धायें ब्रज-नागरी हो नि मुरली देर । गाय कबीर अधीर उदावत भावत है सई । लाब सक माने नहीं हो रहत श्याम को घेर । देखत ही नोहि ौर परेगी नि नबेनी नई । मगन भई सब रूप में हो गोकन गाँव बिसारि । हार नारि रंग डारि मि मुख चूरी कार ने रई। 'हरीचंद' जन पारने हो धन धन्य ब्रज-नारि ६ तब नासा कट अनि नहि रोहै जब तेरी लाज गई। इकताला 'हरीचंद सो को ऐसी जो नै के नाहि गई। होरी भात पिय नदानाल झलवत सब ब्रज की बाल जो में इरपत ही सो भई। बंदावन नवल कुज लोन दोलिका । छैल छबीले खिलारन लीने ठाढ़ो दई। संग राधिका सुजान गावत सारंग तान फेट गुलाल परे इफ कर ले गावत तान नई। बजत बाँसुरी मृदंग बीन होलिका ! वाकी तान सुनत सो को नहि जाकी लार गई। ऊधम अति होत जात चूंघट में नहि नखात एक प्रीत, मेरी वासों पुनि जे होरी छई। छूटन बहुरंग उड़त अबिर भोलिका । | हरीचंद छिपिद नाही अब जानेंगे लो कई १० 'हरीचददै असीस कहत जियो लख बरीस दिन दिन यह आवे तेहवार होलिका ७ डफ की हम चाकर राधा रानी के । काफी ठाकुर श्री नंदनंदन के वृषभानु लली ठकरानी के । अरे जोगिया हो कोन देस ते आयो । निरभय रहत बदरा नहि काहू डर नहि हरत भवानीक। हाँ हारे जोगी मीठे तेरे बोल । टेक। 'हरीचंद नित रह दिवाने सूरत अजब निवानी के ।११ आँखें लाल बनी मद-माती कुसुम फूल के रंग। अब तेरे भए पिया बदि के। मानो शिव बरसाने आयो चेला न कोक संग ।। हाँ हारे जोगी पहिरे बंधवर चोल ।। दगे नाम सों यार तिहारे छाप तेरो सिर ऊपर ले । हाँ हो रे जोगी तू तो चेला काम को भूठो साथ्यो ध्यान । कहां जाहि अब छोडि पियारे रहें तोहि निज सरबस है। जैसो बकुला गंगा-जन में बेठत आइ सुजान। 'हरीचंद' ब्रज की कुंजन में डोलेंगे कहि राधे जै ।१२ हाँ हाँरेजोगी खोजि आपुने नैन । चिर जी) फागुन को रसिया । हाँ हाँरेजोगी बलन को ऐसे देखे जैसे ब्रज को जब लौ सूरज चंद उँजेरी तब जौं ब्रज में फिर बसिया । रसिया कोय। नित नित आश्रो होरी खेलन नित गारी नित ही हंसिया । जोग लियो कैसो रे जोगी वह तो जोग न होय ।। 'हरीचंद' इन नैन सदा रही हाँ हारे बोगी नारी विन कैसो मैन ।। पीत पिछौरी कटि कसिया ।११ हाँ हारेजोगी कुंज कटी एक्यंत यही में कोक नाहिने जो बरजे निडर छैल । जो तू निकसे आय । अररानो ही परत डरत नहि । तो इक मोहन मंत्र को हम देहे तोहि सिखाय ।। हाँ हाँरे जोगी होयगो परम अनंद ।। रोकि रहत मग बनि अरेल । वाके डर सों कोऊ कुल की नारि अहाँ हारेजोगी तोसों मंतर शेहिगाहो भेट घरे धन-धाम। जोगी तेरे कारने सब जोगिन ब्रज की बाम ।। निकसत नहिं जमुना की गैल । 'हरीचद' जैसे निबहेगी हाँ हाँरे जोगी चेला तेरो 'हरीचंद' ।। फागुन के वाके फंद फेल । भारतेन्दु समग्न ११०