पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१२१

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agar त्रेता में जो लछिमन करी सो इन कलियुग माहि किय। । द्विज ब्रह्मदत्त सह प्रगट एहि न अग्रज कुंदनलाल सदा दैवत सम मान्यौ । समय भक्त हरि के भये ।१९५० परम गुप्त हरि-बिरह अमृत सौ हियरो सान्यौ । | ये चार भक्त एहि काल के औरहु हरि-पद-पंकज-रत । अंतरंग सखि भाव कबहु काह न लखायो ।। राम नाम रत रामदास हापड़ के बासी । करम-जाल विध्वंसि प्रेम-पथ सुदृढ़ चलायो । | त्यागि संपदा भए सुनत सप्ताह उदासी । श्री कुंदनलाल उदार मनि बंधु-भगति अति धारि हिय।। जागो भट्ट प्रसिद्ध भजन-प्रिय सेवत कासी । त्रेता में जो लछिमन करी सो राम-नाम-रत माजी नागर बस प्रकासी । इन कलियुग माहि किय ।१९१ | श्री हरिभाऊ हरिभाव-रत शूलटक सिव ढिग बसत । नित श्याम सखी सम नेह नव श्याम सखा हरि सुजस कवि।। ये चार भक्त एहि काल के नित्य पाँच पद विरचि कृष्ण अचरन तब ठानत । औरहु हरि-पद-कंज-रत ।१९६ गान तान बंधान बांधि हरि सुजस बखानत । उनइस सै तैंतीस वर संवत भादो मास । देस देस प्रति घूमि घूमि नर पावन कीनो । पूनो सुभ ससि दिन कियो भक्त-चरित्र प्रकास । निज नयनन के प्रेम-बार हियरो नित भीनो । जे या संवत लौं भए जिनको सुन्यो चरित्र । घर त्यागि फिरत इत उत भ्रमत ते राखे या ग्रंथ में हरि-जन परम पवित्र । भक्त्त-बनज-बन प्रगट रवि । प्राननाथ आरति-हरन सुमिरि पिया नंद-नंद । नित श्याम सखी सम नेह नव श्याम भक्तमाल उत्तर अरध लिखी दास हरिचंद । सखा हरि सुजस कवि ।१९२ दक्षिण के ये सब भक्त्तवर संत मामलेदार सह । जो जग नर हवै अवतो प्रेम प्रगट जिन कीन । तुकाराम चोखा महार सावता माली। तिनहीं उत्तर अरध यह भक्तमाल रचि दीन । नामदेव गोरा कुम्हार पंढरी सुचाली । जब वल्लभ विट्ठल जयति जै जै पिय नंदलाल । रामदास पुनि एक नाथ मायूर कन्हाई । जिन बिरची यह प्रम-गुन गुथी भक्ति की माल । कृष्णा साबू और कृष्ण अर्पन रत बाई । नहि तो समरथ यह कहाँ हरिजन गुन सक गाय । दामाजी दत्त बधूत ज्ञानेश्वर अमृतराव कह । ताह मैं हरिचंद सो पामर है केहि भाय । दक्षिण के ये सब भक्तवर संत मामलेदार सह ।१९३ जगत-जाल मैं नित बंध्यो पर्यो नारि के जद । नारायन शालग्नाम हरिभक्त प्रगट यहि काल के । मिथ्या अभिमानी पतित भूठो कवि हरिचंद । गट्टजी महराज काउजिभ कृष्णदास धरि । । धोबी बच सों सिय तजन ब्रज तजि मधुरा गौन । तुलाराम रधुनाथदास रघुनाथसिंह हरि । । यह है संका जा हिये करत सदा ही भौन । युगुलानन्य सुप्रियादास राधिकादास कहि ।। दुखी जगत-गति नरक कह देखि कर अन्याय । हरिबिलास नवनीत गोप जे श्रीकृष्णा लहि । हरि-दयालुता मैं उठत संका जा जिय आय । मथुरा ससि हरख अजीत हरि रामगुलाम गुपाल के । ऐसे संकित जीअ सो हरि हरि-भक्त्त चरित्र । नारायन शालग्राम हरिभक्त प्रगट यहि काल के ।१९४| कबहूँ गायो जाइ नहिं यूह बिनु संक पवित्र । हरि-चरित्र हरि ही कयौ हरिहि सुनत चितलाय । द्विज ब्रह्मदत्त सह प्रगट एहि समय भक्त हरि के भये। हरिहि बड़ाई करत हरि ही समुझत मन भाय । रामसखा हरिहरप्रसाद लक्ष्मीनारायन । हम तो श्री वल्लभ-कृपा इतनो जान्यौ सार । अवधदास चौपाई उमादत जन रामायन । सत्य एक नंदनंद है भूठो सब संसार । रामचरन सुक लोटा गटू रामप्रसादा ।। तासों सब सों बिनय करि कहत पुकार पुकार । सेवक सीताराम पोहरी गएलू दादा । कान खोलि सबही सुनौ जो चाहो निस्तार । कान खोलि सही नामनिरंजन जुगल जुगराज परम हंसादि ये। | मोरौ मुख घर ओर सों तोरौ भव के जाल । कार का समास से । १३. दशमस्कंध कवितावली - कवित्त १६७ अति विचित्र है ।१४. महिम्न कवितावली-कवित्त २७।१५. नानक नवक - कवित्त ९ नानक शाह की स्तुति । १३. रासपंचाध्यायी - कवित्त ६० । १७. ब्रजयात्रा-कवित्त १५० व्रज के यात्रा का वर्णन । १८, कवित्त कादधिनी - भागवत कम से कवित्त १५० । १९, रघूत्तसहस नाम-श्लोक २५ वाल्मीकि रामायण की कथा भी क्रम से । २०. पद रत्नावली - विष्णु पदों में रामायण । इसी प्रकार और भी उत्तम ग्रंथ है। उतराहर्द भक्तमाल ८१