पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/११५३

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पंच कालानुष्ठान का भाष्य याप्रहस्त, पंडित करभिदिपाल, वहिर्मुख मुख मर्थन अध्याय गिरि सहस्र दृषिणी पारंगत वन सेतुका. जान्हवी मुक्ता- वली वेदान्ताचार्य का लघु भाष्य, यहच्छतदूषणी अणु भाष्य भाष्य प्रदीप, भाष्य प्रकाश, प्रमेय रत्नार्णवर भारतेन्दु जी छोटी-छोटी नोटबुक छपवाकर उन्हें मित्रों में वितरित करते थे जिनमें 'हरिश्चंद्र जी को न भूलिए आदि वाक्य छपे रहते थे । काशी के एक कमिश्नर कारमाइकेल ने ऐसी ही एक नोट बुक की प्रशंसा की थी। इनकी विशेषता भारतेन्दु आबू के शब्दों में ही हमने अपने पत्रों को लिखने के हेतू सात यारों के भिन्न-भिन्न रंग के जागव और उनके ऊपर के दोहे आदि बनाये थे । इनमें जाधव यह है कि बिना वार का नाम लिखेही पढ़ने वाला जान जाएगा कि अमुक वार को पत्र लिखा है । जैसा शनेश्चर के पत्र के ऊपर लिखा हुआ था 'श्री श्यामा श्यामाभ्यां नमः उनके लिखे पत्रों के नीचे यह दोहा लिखा रहता था। बंधुन के पत्राहि कहत, अर्ध मिलन सब कोय। आपहु उत्तर देहु तौ, पूरी मिलनो होय। इनका मुख्य सिद्धांत वाक्य "यतो धर्मस्ततो कृष्ण: यतो कृष्णस्ततो जयः" था। रविवार को गुलाबी शगज पर- "भक्त कमल दिवाकराय नमः" "मित्र पत्र विनु हिय लहत छिनहू नहि विश्राम । प्रफुलित होत न कमल जिमि बिनु रषि उदय ललाम ।।" सोमवार को श्वेत कागज पर "श्रीकृष्णचन्द्राय नमः" "बन्धन के पाहि कहत अर्ध मिलन सब कोय । आपहु उत्तर देहु तौ पूरो मिलनो होय ।।" सोमवार का यह दोहा भी छपवाया था "ससिकुल कैरव सोम कलानाथ विजराज । श्री मुखचन्द्र चकोर श्री, कृष्णचन्द्र महराज।।" मंगल को साल फागज पर - "श्रीवृन्दावन सार्वभौमाय नमः" "मगल भगवान विष्णु मगल गरुड़ध्वजम् । मगल पुण्डरीकाक्ष मगलायतनु हरि ।" विविध. ११०७