पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/११४८

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"देखो सूर्य का उदय हो गया । अहा । इस की शोभा इस समय ऐसी दिखाई पड़ती है मानों अन्धकार को जोतने को दिन ने यह गोला मारा है वा आकाश का यह कोई बड़ा लाल कमल खिला है . . ., वा काल के निर्लेप होने की सौगन्ध खाने को यह तपाया हुआ लोहे का गोला है, वा उस बड़े आतिशवाज का जिस ने रात को अद्भूत गंज सितारा छोड़ा था यह दिन का गुबार है या रात को सुख पाने वाली दिन को वियोगिनी होने वाली स्त्रियों की वियोगाग्नि का कुंड है, .. वा काल खिलाड़ी का यह लाल पतंग है, वा समय रेल की आगमनसूचक यह आगे की लाल लालटेन है . . . वा समयरूपी चालान को पेटो पर यह लाह की मोहर है, वा आकाशरूपी दिगम्बर का भीख मांगने का यह तांबे का कटोरा वा अंधेरे से लड़ने वाले चन्द्रमावीर की यह खून लगी हाल है, वा दिशकामिनी का यह सोने का कर्णफूल है, .वा उस हठीले बालक के खेल की यह चकर्दू है जो उस की आज्ञारूप डोर पर ऊंची नीची ., वा सूर्यवंशियों के अभिमान की गठरी है 'गजर देने का यह घंटा है सूर्यवंशियों के अभिमान की गठरी है' इत्यादि । जिस को इस उपमावली को बहार देखनी हो वह स्वयं इस प्रबन्ध का पाठ करें। है.... हुआ करती है . . .,वा गुरुसारणी "बालाबोधिनी" भारतेन्दु हरिश्चंद्र द्वारा स्त्रियों के लिए ही प्रकाशित की जाती थी। इसमें गुण्सारणी नाम का एक कालम होता था, जिसमें घर के हिसाब किताब के कविता में सूत्र प्रकाशित किये जाते थे। जिसे भारतेन्दु के ही समकालीन कवि हनुमान किशोर ने बनाये थे। बाद मे यह पुस्तकाकार छपा जिसकी भूमिका भारतेन्दु बाबू ने लिखी थी। -सं. (भूमिका) विदित हो कि अपनी छोटी बुद्धि के अनुसार छोटा सा ग्रंथ प्रथम गुरुसारणी लोगों के उपकार के लिए बनाया, वो इस्से बहुत मनुस्यों का उपकार होगा और रुचि होगी तो इससे अच्छे अच्छे ग्रंथ और भी तैयार हुआ करेंगे । प्रथम इस ग्रंथ के बनाने से अमित्त हमारा यह है कि बहुधा लोग अपने पुत्रों को कड़के सबब से पढ़ाने लिखाने में सुसती कर जाते हैं और कहते हैं कि "लड़का जब सयाना होगा और जीता रहेगा पढ़ लेगा" तो हुश्यिार होने पर मनुष्य को अपने कमाने खाने को फिकर हो जाती है और विद्या पढ़ने में मन नहीं लगता । कारण इसका यह है कि एक मन दो जगह कैसे कम से तो वही मनुष्य उस अवस्था में व्यवहारिक कर्म में बहुत कठिनता से हिसाब जान सकते हैं । ऐसे मनुस्यों के हेतु यह ग्रंथ जनाब मुहल्ला अलकाव मिस्टर "सांदरस" साहेब बहादुर के आज्ञानुसार बनारस के रहने वाले पण्डित हनुमान किशोर ने बनाया । और जो हिसाब हरक्त के लेन देन में काम पड़ता है । छंद प्रबन्ध करके लिखा इस कारण से कि वार्तिक विशेष करके लोगों को स्मरण नहीं रहता और इसके यह कि युवा अवस्था में छंद प्रबन्ध से लोगों की रुचि भी विशेष होती है, इसे मन लगा के याद कर लेगें और निश्चय है कि ऐसे उपकारी ग्रंथ का बहुत लोग चाह करेंगे। अगस्त १८७५ जिल्ब दो नं. ८ 'बालारोधिनी' हरिश्चंद्र lexue भारतेन्दु समग्र ११०२