पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१११९

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HOSP भेरा चित्त इससे सन्तुष्ट न हुशा और न जाने क्यों ब्रजभाषा से मुझे इसके लिखने में दूना परिश्रम हुआ । इस भाषा की क्रियाओं में दीर्घ मात्रा विशेष होने के कारण बहुत असुविधा होती है । मैंने कहीं कही सोकयर्य के हेतु वर्ष मात्राओं को भी लघु करके पढ़ने की चाल रखी है । लोग विशेष इच्छा करेंगे और स्पष्ट अनुमति प्रकाश करेंगे तो मैं और भी लिखने का यत्न करूंगा।" -हरिश्चन्द्र ब्रिटिश नेशनल एंथम (राष्ट्रगीत) का अंग्रेजी साम्राज्य की सभी भाषाओं में अनुवाद के लिए सन् १८८२-८३ में इंगलैण्ड में एक कमेटी बनी। इस कमेटी में अपने समय के लगभग सभी प्रभावशाली लोग थे। भारत की बीस भाषाओं में भी इस अंग्रेजी राष्ट्रीय गीत का अनुवाद होना था। जिन लोगों ने इस गीत का अनुवाद किया उनमें प्रो० मैक्समूलर (संस्कृत) , यतीन्द्र नाथ ठाकुर (बंगला) आदि भी हिन्दी अनुवाद के लिए भारतेन्तु बाबू से निवेदन किया गया। उन्होंने यह अनुवाद किस परिस्थिति में किया, यह उनके इस पत्र से पता चलता है। यह पत्र उन्होंने फेडरिक के हेनफोर्ड को लिखा था। पत्र के कुछ ही अंश प्राप्त हैं। मूल पन्न अंग्रेजी में था जो अप्राप्य है। -सं० "आपका . . . तारीख १८८३ का पत्र मिला । जवाब देने में देर हुई । कारण मेरी पाच महीने से चल रही बीमारी, पहले बुखार और कुछ सप्ताह से हैजा । मैं आशा करता हूं कि आप मेरे इस बिलम्ब के कारण को मेरी बेपरवाही नहीं समझेगे। कुछ दिन पहले मैंने आपको (राष्ट्रीय गीत) जातीय संगीत को संस्कृत में गाने के विषय पर ब्राहमानों को सम्मति भेजी थी। उस सम्मति पत्र पर बनारस के संस्कृत के सर्वोत्तम पण्डितों के हस्ताक्षर हैं। उसी के साथ मैने आपको जातीय संगीत का संस्कृत अनुवाद भी भेजा है जिसे 40 गंगाधर शास्त्री ने किया है। अब इस पत्र के साथ मैं आपके जातीय संगीत का हिन्दी अनुवाद भेजता हूं जिसे मैने आपके आदेशानुसार स्वयं किया है। मेरी बीमारी कारण यह इतना उत्तम नहीं हो सका जितना मैं चाहता था। परन्तु दूसरे अनुवादों के अपेक्षा यह अच्छा है, विशेषतया इसलिए कि यह मूल जातीय संगीत के नजदीक है। इसमें मैंने हर लाइन में मूल के भाव के विचारों का ध्यान रखा है। ऐसे काम में जो एक विशेष कठिनाई उपस्थित होती है वह यह है कि अंग्रेजी की भांति हिन्दी में वैसे तुलनात्मक 'मीटर' नहीं है । इसलिए मैंने ऐसे पदों की व्यवस्था की है जो छोटे हो' और जो मूल अंग्रेजी की तरह हों। भारत की एक प्रथा के अनुसार हर राग के गायन का एक समय निश्चित होता है । इसके अनुसार सार्यकाल का राग प्रातःकाल नहीं गाया जाता । यह प्रतिकूल ही नहीं, वरन् पाप समझा जाता है । इसलिए वहा अंग्रेजी के पद्य तो किसी भी समय गाये जा सकते है, हिन्दी के पद्य नहीं गाये जा सकते । मैंने ऐसी पथ प्रणाली चुनी है कि वह किसी भी समय गाये जा सकते हैं । इंगलैण्ड में तो आपने इस विषय पर अब विचार किया है । मैंने कई वर्ष हुए सोचा था कि जातीय संगीत. या सम्राज्ञी के लिए शुभकामनाओं की कविता हमारे देश की समालों में भी गाई जानी चाहिये । मेरी मनोकामना अभी तक पूरी नहीं हो पाई । मेरी अपनी इच्छापूर्ति के लिए मैंने अपनी कृतियों के अन्त में एक पद्य दे दिया है । जब क्वीन विक्टोरिया ने १८७७ में "भारत सम्राजी' की पदवी ग्रहण की थी तब मैंने उर्दू में एक गजल लिखी थी । यह एक सार्वजनिक सभा में गाई भी गई थी । और ... पेरिस . . के अखबारों में इसकी समालोचना भी छपी थी। यदि आपको मेरे अनुवाद में कोई भी त्रुटि दिखाई दे. या आपके विचार में किसी पद में परिवर्तन आवश्यक हो, तो कृपा करके निस्संकोच मुझे लिख दीजिये। Astel kok*** पत्र साहित्य १०७५