पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१११

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अंतरंग हरि-सखा नित्य जेहि प्रिय गिरिधारा । [तन सम धन के मोह तजे सेवा हित धारी |SAR भाषा मैं भागवत रची अति सरस सुहाई। | अन्याय को त्याग सदा भक्त्तन हितकारी । बगरु आगे द्विज कथन सुनत जल माहि बाई। | नित सेवत मथुरानाथ को प्रकट संप्रदा फल लहे । पंचाध्यायी हठि करि रखि तब गुरुवर द्विज भए हरत । दामोदरदास कन्नौज के संभलवार खत्री रहे ।८५ श्री नंददास रस-रास-रत प्रान तज्यौ सुधि सो करत ।८० पद्मनाभदास कन्नौज को श्री मधुरानाथ न तजे । श्री दास चतुर्भुज तोक बपु सख्य दास्य दोऊ निरत । नाम दास ले व्यास वृत्त प्रभु रूप लै त्यागी । निज मुख कुंभनदास पुत्र पूरो जेहि भाख्यौ । भीषौ अनुचित जानि पुष्टि मारग अनुरागी । गाइ गाइ पद नवल कृष्ण-रस नित जिन चाख्यो । कौड़ी लकड़ी बेंचि भागवत कृत निरवाहे । बिरि बिरह अनुभयो संग रहि जुगल केलि रस । छोला ही तें तोपि इष्ट ऐश्वर्ज न चाहे । सब छिन सोइ रग रेंगे बल्लभी-जन के सरबस । सर्वज्ञ भक्त अरु दीन-हित जानि एक कृष्णहि भजे । सेयो श्री बिट्ठल भाव करि जगत-वासना सों विरत । पद्मनाभदास कन्नौज को श्री मथुरानाथ न तजे ।८६ श्री दास चतुर्भुज तोक बपु सख्य दास दोऊ निरत ।८१ तनया पद्मनाभ-दास की तुलसा वैष्णव रुचि रषी । श्री छीत स्वामि हरि और गुरु प्रगट करि कै लखै । सषड़ी महाप्रसाद जाति-भय भगत न लीनी । गुरूहि परिच्छन हेत प्रथम सनमुख जब आए । जिय में यही बिचारि वैष्णवी पूरी कीनी । पोलो नरियर खोटो रुपया भेंट चढ़ाए । पै दोउन को श्री मथुरापति कही सपन में । श्री विठ्ठल तेहि साचो किय लखि अचरज धारी। सडिहि महाप्रसाद जाति-भय करौ न मन में । शरन गए कहि छमहु नाथ यह चूक हमारी। श्री गोस्वामी हु मुदित मे सानुभावता अति लषी । पद विरचि सेइ श्रीनाथ कह विविध गुप्त अनुभव चखे।। तनया पद्मनाभ-दास की तुलसा वैष्णव रुचि रषी ।८७ श्री छीत स्वामि हरि और गुरु प्रगट एक करि कै लखे८२ चौरासी परसंग मैं मम आयसु धरि सीस । पद्मनाभदास की बहू की ग्लानि गई सब जीय की । छंद रचे ब्रजचंद कछु सुमिरि गोकुलाधीस ।। लिख्यौ कुष्ट-विरतांत महाप्रभु निकट पठायो । सेवक दुख सुनि के प्रभुहू कछु जिय दुख पायो । अथ चौरासी वैष्णव प्रसंग दृढ़ विश्वास सुहेत दई अज्ञा प्रभु सेवहु । दामोदरदास दयाल मे सूत्र रूप यह माल के। वर पुरुषोत्तमदास कथा को समझ्यौ भेवह । जिन कहँ श्री प्रभु *कयौ कियो तेरे हित मारग। सेवत ही चारहि मास के भई पूर्व गति पीय की । एक मात्र ये रहे रहस्यन के नित पारग। पद्मनाभदास की बहु की ग्लानि गई सब जीय की ।८८ वल्लभ पथ के खभ समर्पन प्रथम किए जिन । नाती पदानाभदास के रधुनाथदास सास्त्री रहे । अनदिन छाया सरिस संग रहि भेद लहे इन । श्रीगोस्वामी-चरन-कमल बंदे गोकुल मैं। रहिहें जब लौं भूव पंथ यह अंतरंग नंदलाल के । पाई सुगम सुराह तिगुन-मय या वपु कुल मैं । श्री मथुरापति प्रगट भाव-बस बिहरत भूले । के कष्ण-दास मेघन भये । | या कल की मरजाद जान जाऐं अनुकले । वेदव्यास-ढिग मिलन पधारे । । परमानंद सोनी संग तें परम भागवत पद लडे जल बिन ठाढ़े रहे दुआरे । | नाती पद्मनाभदास के रधुनाथदास सास्त्री रहे 10 छत्रानी रजो अडेल की परम भागवत रूप ही। सन श्री प्रभुहि परम उत्तम बर पाए। श्राद्ध लक्षमन भट्ट सरपि कछु थोरो हो तह। भमि परिक्रम सँग गये। महाप्रभुन घृत हेत पठाए सेवक तेहि पहुँ। गादास मेघन भये ।८४| दिए नहीं बहु भांति माँगि थकि पारिष लीने । सनी रहे। इन ठाकुर घी देनो अति अनुचित दृढ़ कीने । गई साधहुदिन प्रभुहि जिवाँइकै लोकमेटि हरि-गति लही। पगट गागरी भराई। 'छत्रानी रजो अडेल की परम भागवत की दामोदर दास दयाल भे सूत्र रूप यह माल के दृढ़ दास्य परम बिस्वास के कृष्ण-दास मेघन म जब गुरु वल्लभ वेदव्यास-टिगरि तीनि दिवस लौ जल बिनु ठाढ़े रहे दर निसि मैं गंगा तरि गुरु के हित चूड़ा लाए। गिरि-सिला हाथ रोकी गिरत भूमि परिक्रम संग इद दास्य परम बिस्वास के कृष्णदास मेघन भो दामोदरदास कन्नौज के संभलवार खत्री रहे। हरि सेयो दाजि लाज सबे भय लीक मिटाई। साधहदिन नारी सिर घट धारि प्रगट गागरी भराई। छवानी: में प्रभ शब्द से श्री महाप्रभु श्री वल्लभाचार्य जी का नाम जानना ।

  • चौरासी वार्ता प्रसंग में प्रभु शब्द से श्री महाप्रभु श्री वल्लभा

उतराहद भक्तमाल ७१