पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/११०८

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

ने उन से भी बढ़ कर आश्चर्य जनक कार्य किये हैं । पुस्तकों में सारा भूत बंधा पड़ा है, उस काल की भाषा और शब्दावली इन में मौजूद है । जिस समय के अधिकांश पञ्चभूत निर्मित पदार्थ अपने स्थूल शरीर को त्याग कर के निज २ तत्व में जा मिले हैं जहां से उनका लौटना सर्वथा असम्भव है, उस समय के उनहीं पदार्थों का सारा विवरण यदि अब इस समय जानना चाहो तो शिलाखण्ड, ताम्रपत्र, भोजपत्र और आज कल के घास फूस और चिथड़ों से बने हुए कोरे कागज पर के खुदे, लिखे और छपे चिन्हों को देखो इन चिन्हों को देखते ही आप की आंखों के सामने नाना प्रकार के अद्भुत दृष्य आने लगेंगे मानों किसी ने तुम्हारी आत्मा को अपनी आत्मा से आच्छादित कर लिया है और वह तुम्हें नाना रूप रंग तमाशे दिखाते हुए तुम्हें कठपुतली की नाई नचाता है । समझे पाठक । यह क्या है ? मेस्मेरिज्म जानने वाला जैसे कांच और जल को विश्वव्यापिनी विद्युत की आकर्षण शक्ति से आमन्त्रित कर के उस के द्वारा धारक को अपने वश में करता है लेखक वैसे ही इन अक्षर रूपी चीन्हों में अपनी आत्मा को प्रविष्ट कर के उन के समझने वालों के हृदय को अपना बनाता है । जलादिक पार्थिवपदार्थों द्वारा आत्मा का विनियोग क्षण स्थायी परन्तु इन अक्षरों का प्रभाव अचल, अमिट और अनन्त है । इस प्रचलित मेस्मेरिज्म में कारक धारक से बलवान होना चाहिये परन्तु इस लेखन रूपी मेस्मेरिज्म में लेखक मृत्यु शय्या पर पड़े हुए भी महावलवानों के हृदय पर अधिकार करता है । मेस्मेरिज्म में कारक धारक को न वलवान और न निर्बल बना सकता है परन्तु लेखन में लेखक पाठक और श्रोता दोनों को बात की बात में सवल को निर्बल और बलवान को निर्बल बना सकता है । इस लिये, प्रिय पाठक । इस शरीर के साथ नाश होने वाली विद्या और मरणोपरान्त अपने साथ न जाने वाले कर्मों को न सीखो । इस समय देखो इंगलैण्ड, जर्मनी, फ्रांस, अमेरिका, रूस, और जापान की जल, थल सैनायें अपनी शक्ति में मत्त, समुद्रकी उत्ताल तरंगों पर नृत्य कर रही है, गिरिराज के अभ्रभेदी शिखरों पर विहार कर रही हैं ; उन के अस्त्र, शस्त्र और यंत्रागार पृथ्वी पर अपना पूर्ण प्रभाव दिखा कर समुद्र को जलाने, पहाड़ो को उड़ाने और आकाश को भेदने के लिये कमर कसे बैठे हैं ; उनकी राजधानियां संसार वैभव में मदमाती इठलाती हुई अलकापुरी का उपहास कर रही हैं, उन के धनागार (बैंक) अपार धनराशि की ओर निहारते हुए कुवेर के कोषागार को तुच्छ समझने लगे हैं । यह सब कुछ है परन्तु, स्मरण रखिये जो था वह अब नहीं है और जो अब है वह आगे न रहेगा, इस प्राकृत नियम के अनुसार यह जगत का वर्तमान ऐश्वर्या एक दिन अवश्य भूत काल के ऐश्वर्य में जा मिलेगा । भविष्यत् में १९वीं शताब्दि के अन्त और २० के वर्तमान प्रारम्भ के ऐश्वर्य को हमारे आगे की सन्तान क कौन वतलावेगा, ऐश्वर्य के जितने साधन हमारे पास है वह सब मिल कर भी हमारे इस गौरव को नष्ट होने से न बचा सकेंगे । समयान्तर में हमारा यह ऐश्वर्य किसी प्रकार रक्षित न रह सकेगा । उस समय हमारे वर्तमान, धर्म, कर्म, राज्य, बल, गौरव और धन का हाल केसे मारनूम हो सकेगा ? वर्तमान दशा के विपर्य्य होने पर इन शताब्दियों का दृश्य हमारी भविष्यत सन्तान को कौन दिखलावेगा. उस समय, स्मरण रखिये, अन्न वस्त्र हीन, अविक्षिप्त, निरुद्यमी, बकवादी और बखेड़िया लेखक के परिश्रम से ही हमारा यह वर्तमान जगत कालका कौर बन जाने पर जीवित बना रहेगा । पाण्डवों और कौरवों की वह अजित सेना अब कहां है । गांडीव धनुष ऐसे अस्त्र अब कहां है ? समृद्धिशालिनी हस्तिनापुरी अब कहां है ? धर्म राज का वह मय निर्मित सभा भवन कहा है ? और उस समय के उस विचित्र नाटक के सूत्र धार साक्षात् ब्रह्मस्वरूप भगवान कृष्णचन्द्र कहां हैं ? हम क्या बतावें कहां है । अब जगन्नाटक में अपना २ खेल कर अपने आप उसे देख और दूसरों को दिखा कर रंग शाला में चले गये है । परन्तु महर्षि वैशम्पायन की कृपा से आज ५००० वर्ष के बीत जाने पर भी इस कौरव पाण्डवों का महायुद्ध देखते हैं, गाण्डीव के भयकार प्रपात को सुनते हैं, हस्तिनापुरी की शोभा निरखते हैं, पाण्डवों के राजभवन में विचरते हैं और बनविहारी बनवारी के उपदेशामृत को पान करते हैं । उन "कालहु जीति सकल त्रिपुरारी" शिव की सांसारिक लीला कभी की समाप्त हो जाती यदि भोजपत्रादि पर बने हुये अक्षर उन्हें जीवित न रखते । देखो पाठक गण, पुस्तक कैसी अद्भुत विचत्रिशाला (Museum) (अजायवघर) है संसार में अनेक विचित्र शालायें नष्ट हो गई परन्तु यह शाला पृथ्वी के आदि दिन से आज दिन तक ज्यों की त्यों बनी है । मनुष्य जाति का यही सर्वोत्तम नाम है। भारतेन्दु समग्र २०६४