पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१०९७

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

लगती भी है पर रुक जाने से तो ट्रेन की ट्रेन कलकत्ले की बलैक होल हो जाती है पहिले तो पथिक प्रायः बेसुध पड़े रहते हैं और यदि कभी चौंक उठते हैं तो केवल पानी-पानी का शब्द उनके मुख से सुन पड़ता है । जैसे बहेलिये की पिटारियों में बारे फेरे की सिरोहियां कसी रहती हैं वहीं दशा इन जात्रियों की भी होती है। यद्यपि यमलोक और रेल लोक की यात्रा का साथ ही प्रस्थान करते हैं पर न जाने कि पुन्यों से भी वे बच कर घर पहुंचते हैं। बन और पहाड़ो की भी यही दशा है । हरने चौकड़ी भूले मृगतृष्णा के पीछे दौड़ते फिरते हैं मोर मुह खोले इधर से उधर दौड़ते हैं छोटी-छोटी चिड़ियां तो भुन भुन के डाल पर से नीचे गिर गिर पड़ती है, सिंह तराइयों में से सिकार देख कर भी नहीं उठते, पर्वत अंवा से हो जाते हैं वृक्ष सब मुरझाये हुए दूब सूखी हुई कहीं कोकिल और कठफोड़वा के शब्द कान में पड़ते है कहीं पनडुब्धी बोलती है जहां कहीं सोते वा झरने वा कुंड वा झील होती है वहां चारों और जीवों का झुण्ड घिरा रहता है ऐसे कठिन और भीषण ग्रीष्म ऋतु में भी जो श्री वंदावन की लीला में भीगे रहते है और प्रेम में जिनके नेत्र से फुहारे चलते हैं वे शीतल चित्त रहेते हैं क्योकि सच "वृन्दावन गुणैर्वसंत इव लक्ष्यते" "यह लिखा है वहीं ग्रीष्म ऋतु श्री वृंदावन में वसंत सा ज्ञात होता है जिसका पाक जनों को इस पत्र के सम्पादक के पिता के इस ग्रीष्म वर्णन से स्पष्ट अनुभव होगा। EDUCATION COMMISSION EVIDENCE OF BABU HARISHCHANDRA सन् १८८२ में एक शिक्षा कमीशन बैठा था। भारतेन्दु बाबू उसके प्रधान साक्षी चुने गये थे। पर वे बिमारी के कारण स्वयं उपस्थित हो कमीशन के सामने बयान न दे सके। लिहाजा आयोग द्वारा प्रेषित बहत्तर सवालों का उत्तर उन्होंने लिखकर भेजा। शिक्षा कमीशन के प्रश्नों का जो लेखबज उत्तर भारतेन्दु बाबू ने भेजा उस संबंध में तत्कालीन अंगोजी पत्र 'रईस और रैयत' के सम्पादक श्री शम्भूचरण मुखर्जी अपने ७ जुलाई सन् १८५३ के अंक में लिखते हैं- यह रोचक बातों से भरी हुई है और इससे सिद्ध होता है कि जिन विषयों पर इन्होंने लिखा है उन्हें यह पूर्ण रूप से समझे हुए हैं। पश्चिमोत्तर देश में शिक्षा की उन्नति की चाल को यह अवश्य ही बड़ी सावधानी से देखते गये हैं और इस विषय में इनकी जो जानकारी देखी जाती है वह वर्षों के मनन, विचार, अनुसंधान तथा निज अनुभव का परिणाम है। इन्होंने अपनी सम्मतियां बहुत स्पष्ट करके लिखी हैं और जो बातें साधारण प्रवादों के विरुद्ध हैं उनको यह प्रमाणों तथा तर्कों से पुष्ट करते गये हैं। जिस स्वतंत्रता से इन्होंने इस विषय का प्रतिपादन तथा समर्थन किया है वह इन्ही के उपयुक्त है!' उसी साक्षी का यह मुख्य अंश है। सं०

ग्रीष्म ऋतु २०५३