पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१०५९

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O* के प्रथमाक्षर' से स रि ग म प ध नि ये सात स्वर वर्ण नियत हुए । षड्ज, पंचम और मध्यम में चार, ऋषभ- धैवत में तीन और गांधारनिषाद में दो श्रुति है। संपूर्ण स्वर सरिगमपधनि । खाड़व निषाद बिना अर्थात् सरिगमपध और उड़व ऋषभ और पंचम बिना अर्थात सगमधनि । नाटवसंतादि संपूर्ण राग सातो सुर से, खाड़व राग छ: सुर से और उड़व पाँच सुर से गाए जाते हैं । नाम के क्रम से रखने से इनका प्रस्तार होता है और नष्ट, उदिष्ट, मेरू, मर्कटी, पताका, सूची. सप्तसागर इत्यादि में इसका विस्तार होता है। राग -जैसे रास में वंशी के सात रन्द्रों से सात सुरों की उत्पत्ति मानते हैं वैसे ही रास में १६०८ गोपियों के गाने से सोलह सौ आठ तरह के राग हैं, जो एक एक मुख्य दो सौ अट्ठाईस तरह के होकर बने है । भरत और हनुमत मत से छ राग भैरव, कौशिक (मालकोस), हिंदोल, दीपक, श्रा और सोमेश्वर, और कलानाथ के मत से छ राग श्री, बसंत, पंचम, भैरव, मेघ और नटनारायण । पूर्वमत में प्रत्येक राग को पाँच रागिनी, पर मत में छ रागिनी आठ पुत्र और एक एक पुत्र-भार्या । अन्य मत से मालव, मल्लार, श्री, वसंत, हिल्लाल और कर्णाट ये छ राग हैं । मालव की रागिनी धानसी, मालसी, रामकीरी, सिंधुड़ा, भैरवी और आसावरा । मल्लार की बेलावला, पूर्वा, कानड़ा, माधवी, कोड़ा और केदारिका । श्री की गांधारी, शुभगा, गौरी, कौमारिका, बेलवारी, और बैरागी । बसंत की टोड़ी, पंचमी, ललिता, पटमञ्जरी, गुज्जरी और बिभाषा । हिल्लोल की मायूरी, दीपिका, देशकारी, पाहिड़ा, वराडी और मोरहारी । कर्णाट की नाटिका, भूपाली, रामकली, गडा, कामादा और कल्यानी । इन में बराड़ी, मायूरी, कोड़ा. वैरागी, धानुषी, वेलावली और मोरहारी मध्यान्ह को, गांधारी, दीपिका, कल्यानी, पूरबी, कान्हड़ा, शाखी, गौरी, केदारा, पाहड़ी, मालसी, नाटी. मायूरी, भूपाली और सिधुड़ा साँझ को और बाकी सबेरे गाना । राग छओ तीसरे पहर से आधीरात तक । वर्षा में मल्लार और बसंतपंचमी से रामनवमी तक बसंत और वामन द्वादशी से विजयदशमी तक मालसी यह समय नियत है। बेलावली. गांधारी, ललिता, पटमंजरी, वैरागा, मोरहाटी और पाहिड़ी (पहाड़ी) यह करुणा में, पूरबी, कान्हड़ा, गौरी, रामकीरी, दापिका, आसावरी, विभाषा, वडारी और गड़ा यह बीर में, शेष शृंगाररस में गाना । वैसेही, मालव, श्री, हिल्लोल और भल्लार शृंगार में और बसंत और कर्णाट वीररस में गाना । वह पूर्वोक्त अन्य मत दक्षिण में प्रचलित है इधर नहीं । कहते हैं कि शिव, शारद, नारद और गंधर्व यह चार मत पृथक् हैं । इधर हनुमत् और भरत मत मिल के प्रचलित हैं । हनुमत् मत से प्रथम राग भैरव, उसका ध्यान महादेवजी की भाँति, उत्पत्ति शिवजी के मुख से, जाति उड़व अर्थात धनिसगम, यह पंचस्वर, गृहधैवत्, गाने का समय शरतमृतु में प्रात: काल, भैरवी, बंगाली, बगरी, मधुमाधवी और सिंघवी यह पाँच रागनी, हर्ष, तिलक, सूहा, पूरिया, माधव, बलनेह, मधु और पंचम ये आळं पुत्र । कलानाथ-मत से यह चतुर्थराग, इनकी भैरवी. गुर्जरी, भासा, विलावली, कर्णाटी और बड़हंसा यह छ रागिनी, देवशाख, ललित, मालकोस, बिलावल, हर्ष, माधव, बलनेह. और मधु ये आठ पुत्र । सोमेश्वर-मत से भैरवी, गुनकली, देवा, गूजडि, बंगाली और बहुली ये छ रागिनी और गाने का समय ग्रीषम् । भरत-मत से ललिता. मधुमाधवी, बरारी, बाहाकली और भैरवी यह पाँच रागिनी, देवशाख, ललित, विलावल, हर्ष, माधव, बंगाल. विभास और पंचम ये आठ पुत्र, सूहा, विलावली, सोराठी, कुंभारी, अंदाही, बहुलगूजरी, पटमंजरी, मिरवी यह आठ पुत्र-भार्या, मतांतर से भैरवी, बंगाली, वैरागी मध्यमा, मधुमाधवी और सिंधवी यह छ रागिनी, कोशक, अजयपाल, श्याम, खरताप, शुद, और टोल यह छ पुत्र, अष्टी, रेवा, बहुला, साहिनी, रामेली और सूहा यह छ पुत्रवधू । सब मतों से रागों का परस्पर भेद दिखाकर अब केवल प्रसिद्ध अनुमत और भरत मत सब रागों का वर्णन करते हैं । मालकोस भरत मत से दूसरा राग है, विष्णु के कंठ से निकला है, संपूर्ण जाति, स्वर सातो सरिगमपधनि, गृह षड्ज स्वर, शरद्ऋतु में पिछली रात को गाने का समय, ध्यान युवा गौर पुरुष, इसकी रागिनी हनुत मत से यथा -टोड़ी, गुनकली, गौरी, खंभावती और ककुभ, आठ पुत्र यथा मारू, मेवाड़, बड़हंस, प्रबल, चंद्रक, नंद, भ्रमर और खुखर । भरत मत से गौरी, दयावती, देवदाली, खंभावती और ककुभ रागिनी, और गांधार, शुद्ध, मकर, त्रिछन, महाना, शक्रवल्लभ, माली और कामोद पुत्र, घनाश्री, मालनी, जयश्री, सुधवारी, दुर्गा, गांधारी, भीमपलासी और कामोद, आठ पुत्र आर्या । हिंदोल भरत मत से द्वितीय और हनुमत से तृतीय राग है, उत्पति ब्रह्मा के शरीर से, जाति उड़व, स्वर १. 'ष' 'ऋ' के उच्चारण की सुगमता के हेतु 'स' 'रि' माना है। A संगीत सार १०१५