पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१०२५

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YO*** -W** उसके पीछे दो लड़के और भी हुए और वे भी बालकपन ही से ज्ञान का उपदेश सुनते सुनते जब बड़े हुए तो संसार से उदास होकर घर छोड़ गए। क्योंकि कच्चे कलेजे में जो बात सिखाई जाती है बड़े होने पर उसका असर चित्त पर बहुत रहता है । राजा मदालसा के इस कृत्य से बहुत उदास रहता था । जब चौथा लड़का हुआ और उसका नामकरण करने लगा तो मदालसा से बोला कि देवी, अब की तुम्ही इसका नाम रक्खो क्योंकि उन तीनों के हमारे नाम रखने से तुम हँसती थीं । मदालसा ने उस लड़के का नाम अलकं रक्खा । राजा ने पूछा 'अलर्क शब्द का तो कुछ अर्थ ही नहीं ऐसा नाम क्यों ?' मदालसा ने कहा 'पुकारने के वास्ते कोई संज्ञा रखनी चाहिए, इसमें सार्थक और निरर्थक क्या ?' एक दिन राजा ने देखा कि उसको भी वही सब कह कह कर खिला रही है, तो राजा को बड़ा ही क्षोभ हुआ । हाथ जोड़कर बोला 'चंडिके, यह बालक हमैं दान कर दो, तीन को तुम मिट्टी में मिला चुकीं यही एक बाकी रहा है ।' पति की इच्छानुसार मदालसा ने उसे ज्ञानोपदेश न करके उसके बदले अनेक प्रकार की नीति और धर्म पढ़ाया, जिसके प्रताप से किसी समय अलर्क बड़ा प्रतापी हुआ क्योंकि माता की शिक्षा सब शिक्षा से बढ़ कर है। राजा रानी ने अलर्क को समर्थ देखकर राज का बोझ सौंप दिया और आप तप करने वन में चले गए । यही अलर्क जब राज काज में भूल कर संसार में फंस गया था तो मदालसा के दिए हुए यंत्र को (जिस पर लिखा था "संपत्ति में औदार्य, विपत्ति में धैर्य, संग्राम में शौर्य और सब समय में जिसे ज्ञान नहीं, उसका संसार में जन्म व्यर्थ है । संग, काम, क्रोध, लोभ, मोह ये पांचों दुस्त्यज्य हैं, इससे इनको १ सत् २ स्वकीया ३ अपनी अकृतज्ञता ४ सिद्धांत ५ भगवान की ओर प्रयुक्त करै) पढ़कर और अपने बड़े भाई सुबाहु की कृपा और दत्तात्रेय जी के उपदेश से बड़ा ज्ञानी गुणी प्रतापी और प्रसिद्ध राजा हुआ है। एक कहानी कुछ आप बीती कुछ जग बीती यह अश 'कविवचन सुधा' भाग ८ सं. २२ बैशाख कृष्ण ४ सन् १८७६ में प्रकाशित हुआ। यह भारतेन्दु का आत्मचरित्र है। निश्चित रूप से यह भारतेन्तु की पहली औपन्यासिक कृति होती यदि यह पूरी हुई होती। आत्मकथात्मक शैली में लिखे इस लेख के केवल दो ही पन्ने मिलते हैं। इस अधूरे लेख की शैली भारतेन्दु के व्यक्तित्व के बहुत करीब है। सं. प्रथम खेल जमीने चमन गुल खिलाती है क्या क्या ? बदलता है रंग आसमाँ कैसे कैसे ।। हम कौन हैं और किस कुल में उत्पन्न हैं आप लोग पीछे जानेंगे । आप लोगों को क्या, किसी का रोना हो पढ़े चलिए, जी बहलाने से काम है । अभी मैं इतना ही कहता हूँ कि मेरा जन्म जिस तिथि को हुआ वह जैन और वैदिक दोनों में बड़ा पवित्र दिन है । सं. १९३० में मैं जब तेईस बरस का था, एक दिन खिड़की पर बैठा था, बसन्त ऋतु, हवा ठंडी चलती थी ? साँझ फूली हुई, आकाश में एक ओर चन्द्रमा दूसरी ओर सूर्य पर दोनों लाल लाल, अजब समा बंधा हुआ कसेरू, गंडेरी और फूल बेंचनेवाले सड़क पर पुकार रहे थे । मैं भी जवानी की उमंगों में चूर, जमाने के ऊँच नीच से बेखबर, अपनी रसिकाई के नशे में मस्त, दुनिया के मुफ्तखोरे सिफारशियों से घिरा हुआ अपनी तारीफ सुन रहा था, पर इस छोटी अवस्था में भी प्रेम को भली भांति पहचानता था।

एक कहानी कुछ आप बीती कुछ जग बीती ९८१