पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१०२२

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ऐसा मित्रों को सुखलाई पुत्र हुआ , म है. भला ऐसे लगे । 'मता कपास उसकी जवानी में गालव नाम मालपनाम को बहुत दुःख जो मैंने एक बैठी थी । कैचर को देखते ही वह कन्या बेहोश हो गई पता मिली थी, वह भी उसके पास -WA00 मदालसा (उपाख्यान मार्कण्डेयपुराण से) पुराने जमाने में शत्रुजित नाम का एक राजा था और उसको अरिविदारण कृतघ्यज नाम का एक लड़का था । अश्वतर नाग के दो सड़के ब्राहमण बनकर उसके साथ खेलने आते थे । राजकुमार से उनसे ऐसी नीति हो गई थी कि वे रात दिन नाग लोक छोड़कर यही भूले रहते थे । एक दिन नागों के राजा अश्वतर ने अपने लड़कों से पूछा 'प्यारे लड़को, आज कल तुम लोग नाग लोक छोड़कर मृत्यु लोक ही में क्यों रमे रहते हो ?' हो,' वे बोले 'पिला, शत्रुजित राजा के कुमार कृतघ्यन ने शिष्टाचार और प्रीति से हमारा मन ऐसा मोहा है कि पाताल उसके विना गम और उसके मिलने से सूर्य ठडा मालूम पड़ता है 'पिता ने कहा 'निस्संदेह वह पुरुष धन्य है जिसको सच्चे सहत । लोगों ने उपकार भी किया ?' लड़के कहने हम लोग उसका क्या उपकार करेंगे, धन, जन, विद्या सबमें वह हमसे बढ़ उसका एक काम है उसको ब्रहमादिक ईश्वर के सिवा कोई है और जो बढ़ चढ़। - । सही, ऐसा कौन काम है जो आदमी न कर सके । किसी प्रकार भी तुम लोग मित्र का प्रति उपकार कर सको र नहीं सकता ।' नागराज ने कहा 'मला हम सुनें तो मैं अपने को ऋण से छूटा समझू ।' नाग पुत्र बोले 'उस मित्र में पास का ब्राहमण एक बहुत बढ़िया घोड़ा शेकर आया और बोला कि महाराज एक राक्षस हम लोगों को देता है, नित्य तप में विघ्न कर करके उसने शमारी नाकों में दम कर रक्या। र लोगों ने बड़े कष्ट से तप किया है इससे उसको शाप देकर तप नहीं न्यून किया चाहते । एक बड़े दुःखी हो। लम्बी ठंडी सांस मरी तो देखता हूं कि यह घोड़ा आसमान से उतरा चाला आता है, साथ ही साकाश वाणी भी सुना कि इस घोड़े की गति पच्ची और जाकाश पाताल सब जगह है । और ऐसा घोड़ा पच्चो पर दूसरा नहीं है। चाल में हवा को भी यह पीछे छोड़ता हुआ संसारियों के मन की भाँति उड़ा चलता है । इसका नाम कुवलय है, इसे राजा शत्रुजित को वे और उसका पुत्र सवार हो कर उस बड़ी कीर्ति होगी । सो अब मै आप के पास आया हो कर उस राक्षस को मारे । इससे उस राजा की । राजा ने और ब्राहमण के साथ विवा किया । राज कुमार द्वाणष के आश्रम में रहने लगा । एक दिन वह राक्षस जंगली राजा न कुमार को उसी समय सज सजा कर असीस बी सुअर बन कर जचा और अब कुलर ने उसके पीछे धनुष तान कर घोड़ा दौड़ाया तो वह एक घने जंगल में भागा। ।। भागते भागते वह बहुत दूर जाकर एक गड़हे में गिर पड़ा तो कुंअर भी साथ । को कुछ भी नहीं देखाता था पर घोड़ा फेंके चला जाता था । जब उजेता आया तो वह सुअर न दिखाई पड़ा थ ही कूवा । अँधेरे में कुंआर सिर्फ एक बड़ा रत्नों से से जड़ा घर सामने खड़ा था । उसके दरवाजे की सीढ़ी पर एक जवान सुंदर स्त्री चढ़ी जाती थी। कुंआर भी दरवाजे पर घोड़ा गाँध बेधड़क उस मकान में घुसा और ए बड़ी सजी सजाई जड़ाऊ दालान में हिंडोला खाट पर उसे एक कन्या दिखाई पड़ी और जो स्त्री उसे र से सीढ़ी पर किया । तब कुंआर उस सखी से उन लोगों का नाँव गाँव और बेहोशी का कारण पूछने लगा । स्त्री जोशी यह हो गई । उस स्त्री और कुँअर ने किसी तरह उसको सापधान गधवों के राजा विश्वावसु की कन्या है । इसको पातालकेतु यह दुष्ट इससे व्याह करने को था और जब इस दुख से यह प्राण देने नाम का दैत्य माया से उठा लाया है । अगली तेरस तो आकाशवाणी हुई कि प्राण मत दे । गालय के आश्रम में जिस राज कुँअर से यह मारा जायगा वही तेरा हाथ पोला करेगा । मैं इसकी सब्जी विध्यवान की पुत्री कुंडला हूँ । मेरे पति पुष्कर माली को जब शम्भू दैत्य ने वध कर डाला तब से धर्म में लगी हूँ । इसके मूच्छा का कारन यह है कि आज में सवर ले आई है कि गालव आश्रम सुअर बने हुए वैत्य को बान से मारा है । अब वही इसका पति होगा पर यह तुम्हारे रूप से मोड गई है और यह सोचती है कि हाय जिसको मैं चाहती हैं उससे न व्याही जाऊँगी । अब आप कौन है, कहिए ? राजकुमार ने सब हाल कहा और अपना राक्षस का मारना वर्णन किया । सुनते ही उस कन्या ने घट प्रसन्न होकर कुंडला से बोली सखी, सुरभी का कहना क्या झूठ हो सकता है। कुंडला ने उसी समय तुबरु लिया और बहुत गघर्ष का ध्यान क्रिया । उसने आते ही प्रसन्नता से अग्नि को सादी देकर दोनों का साथ दोनों को पकड़ा दिया भारतेन्दु समग्र ९७८ किसी ने