पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१००८

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और उससे लाभ उठाते हैं सो उनके इस हाथ के लिखने और लाभ उठाने पर धिक्कार है । कितने कहते हैं कि हमको नर्क का भय नहीं केवल कुछ दिन नर्क भोगना होगा । तो कहो कि क्या ईश्वर से उन लोगों ने ऐसा वचन ले लिया है यदि ऐसा वचन ले लिया है तो अवश्य ईश्वर उसके विरुद्ध न करेगा परंतु उसके विषय में व्यर्थ झूठ क्यों कहते हो । जिन लोगों ने पाप कमाया है उनको पाप ने आच्छादन कर लिया है और वे नर्क के भागी हैं और सदा नर्क ही में रहेंगे । और जिन लोगों ने धर्म विश्वास किया और पुण्य कर्म किए बे वर्ग के भागी हैं और सदा स्वर्ग में रहेंगे । हमने इसराईल की संतान से शपथ लिया था कि ईश्वर को छोड़ और किसी की पूजा मत करो, माता, पिता, संबंधी, अनाथ और दीनों का उपकार करो, लोगों से अच्छे वचन बोलो, वंदना नित्य करो और दान दो किन्तु तुम लोगों में से कुछ लोग फिर गए । फिर तुम लोगों से हमने शपथ लिया कि आपस में मार काट न करो और न अपने जातिवालों को देश से निकालो और तुमने भी यह प्रतिज्ञा की और उस पर आरूढ़ रहे । परंतु फिर तुम वैसे ही मार काट करते हो, अपने जाति के लोगों को देश से निकाल देते हो, उन पर पाप और अन्याय से चय़ाई करते हो, और वही लोग जब तुम्हारे सामने बंधुए होकर आते हैं तो उनको छुड़ाने को भी प्रस्तुत होते हो, यद्यपि उनका निकाल देना ही पाप है, तो क्यों धर्म पुस्तक का एक वाक्य मानते हो एक नहीं मानते, तो ऐसे लोगों को क्या दंड है, यही कि संसार जीवन में तो निन्दा और प्रलय के दिन कठिन से कठिन नर्क दंड, क्योंकि ईश्वर तुम्हारे सब कर्मों का ज्ञाता है । ऐसे ही लोगों ने तुच्छ संसार के बदले (चिरसुख) स्वर्ग छोड़ा है सो ऐसे लोगों का पाप न हलका होगा न उन पर दया होगी । और हमने मूसा (मोक्ष) को धर्म पुस्तक दी और उसके पीछे बराबर धर्मदूत भेजे और मरियम के पुत्र ईसा (ईश) को अनेक चमत्कार शक्ति दी और पवित्रात्मा ((जिबरील-गरुड) के द्वारा अनेक बल दिए किन्तु किसी धर्मदूत ने तुम लोगों से कोई बात ऐसी कही जो तुम्हारी रुचि के अनुसार नहीं थी तो तुम अभिमान करते थे और कुछ लोगों को बहकाया और अनेकों को मार डाला । और कहते कि हमारे चित्त पर आवरण पड़ा है इससे ईश्वर ने उनको (धर्मदूतों से) विमुख होने पर धिक्कृत किया । और जब उनको धर्म पुस्तक ईश्वर की ओर से मिली तो अपने पास वाली (धर्म पुस्तक) को सच्ची बतलाने लगे, सो यद्यपि पहिले ये अधर्मी लोगों को जीतने चाहते थे परंतु जब उनको वह वस्तु भेजी गई जिसका उनको ज्ञान था और उससे भी फिर गए तो विमुख होनेवालों की ईश्वर ने धिक्कार किया । ऐसे लोगों ने प्राण के बदले बुरी वस्तु मोल ली कि उन वाक्यों से जो ईश्वर ने उनके हेतु उतारा फिर गए सो भी केवल ईर्षा से और अपनी दया से वह अपने दासों में से चाहे जिसके द्वारा अपने वाक्य उतारे अतएव (विरोधी) उन पर कोप पर कोप हुआ और ऐसे फिर जानेवालों को पाप और दुर्दशा है । और जो उनसे कहो कि जो वाक्य ईश्वर ने उतारा है उसको मानो तो वे कहते है कि हम पर जो पूर्व में उतरा है वही मानते हैं जो अब उतरा है उसको नहीं मानते और यद्यपि यह सत्य है पर उन से पूछो कि जो तुम धार्मिक हो तो ईश्वर के दूतों को क्यों दुःख देते हो । यद्यपि मूसा प्रत्यक्ष में आश्चर्य सिद्धि लेकर तुम्हारे पास आया परंतु उसके पीछे तुमने फिर बछड़ा बना लिया और तुम उपद्रवी हो । १. यहूदियों के एक संप्रदाय का विश्वास था कि केवल थोड़ी सी पाप की यातना भोगने के बाद यहूदी 'मात्र स्वर्ग जायेंगे। जैसा कि काशी वासियों का मैरवी यातना के विषय में विश्वास है । 2. कहते हैं कि विबरील (गरुड़) सदा ईसा के साथ रहते है। ३. यहूदियों का विश्वास है कि उनके चित्त पर ईश्वर ने एक आवरण बनाया है जिससे दूर धर्म का उनको व्यर्थ संस्कार न हो। ४ अर्थात् जब यहूदियों पर अधर्मी लोग उपद्रव करते तब वे (म. मुहम्मद) अंतिम धर्म होने की प्रार्थना करते पर जब वह उत्पन्न हुए तो यहूदी लोग उनसे फिर गए। के उत्पन्न भारतेन्दु समग्र ९६४