पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/७२४

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( १७ )

बुभु०---भाई बहरी ओर यदि मैं जाऊँ तो यहाँ का प्रबंध कौन करेगा।

गोपाल---एँ, गुरु केवल १५ ब्राह्मणो के लिए घबड़ाते हो। सर्वभक्ष को सहेज दो ब्राह्मणो को भेज देगा। ( हिन्दी )

गप्प पं०-( यहाँ से पृ० १७० गोपाल० के कथन तक हिंदी है )

बुभु०-अरे पहिले नए शौकीन के यहाँ चलूँ, वहाँ क्या है यह देख लूँ तब रामचंद की ओर झुकूँ।

माधव शास्त्री---अच्छा वैसा ही हो, आजकल न्यू फांड शास्त्री ने बहुत उदारता धारण की है और बहुत सी चिड़िया भी पाली हैं। वह सब भी देखने में आवेंगी। पर भाई मैं अन्दर नहीं जाऊँगा। क्योकि मुझे देखकर उन्हें बहुत कष्ट होता है।

गोपाल---अच्छा वहाँ तक तो चलो, आगे देखा जायगा।




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