पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/७१९

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के समान वह सिर लिए हुए आती है। वह वहाँ पाती है, जहाँ उसके भाई लोग मारे गए सर्दार के शव की रक्षा करते हैं। सारा पड़ाव शांत है पर रात्रि भी बहुत कम है। उसी सर्दार के पैरों तले वह उसको फेंक देती है, उस नीच बोझ को फेंक देती है ( और कहती है ) 'सूरज, मैंने अपना वचन पूरा किया, भाइयो, चिता तैयार करो।'