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भारतेंदु-नाटकावली

( यमराज आगे बढ़ते हैं, सावित्री उनका अनुसरण करती है। वह पर्दा उठ जाता है। दूसरा दृश्य स्वर्ग का द्वार महाउज्वल तीन अप्सरा हाथ में माला लिये खडी हैं )

अप्सरागण---आओ सावित्री के जीवन।

बहुत दिनन की आसा पूजी अधर-सुधा रस पीवन॥
तुव हित प्रेम-मालिका गूथो पहिरावै निज हाथ।
निर्भय है नंदन बन बिहरै पलहूँ तजै न साथ॥१॥

यम--( पीछे सावित्री को देखकर ) क्या तुम अभी तक हमारे साथ ही हो?

सावित्री---महाराज! क्या अपने दिये हुए वर को अभी भूल गये? सत्यवान का प्राण-वायु मुझे दीजिये।

यम---धन्य देवो धन्य! मैं तुमसे हारा। यद्यपि विधाता के नियम के विरुद्ध है तथापि मैं तुम्हें सत्यवान का जीवदान करता हूँ। ( सत्यवान का प्राणदान ) अाज से मैंने जाना संती नारी को सब कुछ करने की सामर्थ्य है; संसार में सती का अकर्तव्य कोई काम नहीं है। सावित्री! तुम्हारी यह विमल यशध्वजा अनंत काल तक संसार में उड़ती रहैगी, तुम्हारा पवित्र गुण-गान संसार को पावन करता रहैगा और तुम्हारा पूजनीय नाम पतिव्रता स्त्रियों का सर्वस्व होगा। अहा! इस अलौकिक सतीत्व के आगे मुझे भी पराजित होना पड़ा। सतीत्व की जय---सावित्री की जय।