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सतीप्रताप

यम---( फिर कर सावित्री को देखकर ) देवि! तुम क्यों हमारे साथ आती हो? जानो अपने घर। होना था सो तो हो चुका।

सावित्री--सूने घर में जाकर क्या करै? जहाँ सत्यवान वहीं सावित्री।

यम---तुम्हारे सतीत्व से हम अत्यंत संतुष्ट हुए। सत्यवान के प्राण व्यतीत और जो इच्छा हो सो मॉगो।

सावित्री--महाराज! जो आप प्रसन्न हैं तो हमारे ससुर का राज्य जो शत्रुओ ने छीन लिया है सो फेर मिलै।

यम---तथास्तु। अच्छा अब तुम फिर जायो।

( यमराज आगे बढ़ते हैं, सावित्री पीछे पीछे चलती है। वह पर्दा उठ जाता है दूसरा दृश्य भयानक वन महा अंधकार )

यम---( पीछे देख कर ) ऐं! तुम अभी भी नहीं गईं! क्यों व्यर्थ का प्रयास करती हौ---जाओ---अब सत्यवान का मिलना असम्भव ही समझो।

सावित्री---धर्मराज! एक बात और भी प्रार्थनीय है।

यम---सत्यवान के सिवाय और जो कुछ चाहो मिल सकता है।

सावित्री---महाराज! मेरे श्वसुर कुल में वंश चलानेवाला कोई नहीं है इससे मुझे यह घर दीजिये कि सत्यवान से मुझे एक सौ लड़के हों।

यम-तथास्तु।
भा० ना०---३९