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भारतेंदु-नाटकावली

धन्य देस कुल जहॅ निबसत हैं नारी सती सुजान।
धन्य समय सब जन्म लेत ये धन्य ब्याह असथान॥
सब समर्थ पतिबरता नारी इन सम और न आन।

याही ते स्वर्गहु में इनको करत सबै गुन-गान॥

ती० अप्सरा--

(रागिनी बहार)


नवल बन फूली द्रुम-बेली।
लहलह लहकहिं महमह महकहिं मधुर सुगंधहि रेली॥
प्रकृति नवोढा सजे खरी मनु भूषन बसन बनाई।
आँचर उड़त बात-बस फहरत प्रेम-धुजा लहराई॥
गँजहि भॅवर बिहंगम डोलहिं बोलहिं प्रकृति बधाई।
पुतली सी जित-तित तितली-गन फिरहिं सुगंध लुभाई॥
लहरहिं जल लहकहिं सरोजगन हिलहिं पात तरु डारी।

लखि रितुपति आगम सगरे जग मनहुँ कुलाहल भारी॥

(जवनिका गिरती है)