पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/६४७

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५५०
भारतेंदु-नाटकावली

नीबू, रंगतरा, संगतरा। दोनों हाथों लो––नहीं पीछे हाथ ही मलते रहोगे। नरंगी ले नरंगी। टके सेर नरंगी।

हलवाई––अलेबियाँ गरमागरम। ले सेव इमरती लड्डु, गुलाब जामुन खुरमा बुंदिया बरफी समोसा पेड़ा कचौड़ी दालमोट पकौड़ी घेघर गुपचुप। हलुबा ले हलुा मोहनभोग। मोयनदार कचौड़ी कचाका हलुआ नरम चभाका। घी में गरक चीनी में तरातर चासनी में चभाचभ। ले भूर का लड्डु। जो खाय सो भी पछताय। जो न खाय सो भी पछताय। रेवड़ी कड़ाका। पापड़ पड़ाका। ऐसी जात हलवाई जिसके छत्तिस कौम हैं भाई। जैसे कलकत्ते के विलसन मंदिर के भितरिए, वैसे अंधेर-नगरी के हम। सब सामान ताजा। खाजा ले खाजा। टके सेर खाजा।

कुँजडिन––ले धनिया मेथी सोप्रा-पालक चौराई बथुषा करेमू नोनियाँ कुलफा कसारी चना सरसों का साग। मरसा ले मरसा। ले बैगन लौना कोहड़ा आलू अरुई बंडा नेनुऑ सूरन रामतरोई तरोई मुरई। ले आदी मिरचा लहसुन पियाज टिकोरा। ले फालसा खिरनी आम अमरूत निबुधा मटर होरहा। जैसे काजी वैसे पाजी। रैयत राजी टके सेर भाजी। ले हिंदुस्तान का मेवा फूट और बैर।