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नीलदेवी
गायिका––जो हुकुम। (गाती है)
(ठुमरी तिताला)
हाँ, मोसे सेजिया चढ़लि नहिं जाई हो।
पिय बिनु साँपिन सी डसै बिरह रैन॥
छिन-छिन बढ़त बिथा तन सजनी,
कटत न कठिन बियोग की रजनी।
बिनु हरि अति अकुलाई हो॥
अमीर––वाह-वाह क्या कहना है! (मद्यपान) क्यों फिदा हुसैन! कितना अच्छा गाया है।
मुसाहिब––सुबहानअल्लाह! हुजूर क्या कहना है। वल्लाह मेरा तो क्या जिक्र है मेरे बुजुर्गों ने ख्वाब में भी ऐसा गाना नहीं सुना था।
(अमीर अँगूठी उतारकर देना चाहता है)
गायिका––मुझको अभी आपसे बहुत कुछ लेना है। अभी आप इसको अपने पास रखें, अखीर में एक साथ मैं सब ले लूँगी।
अमीर––(मद्यपान करके) अच्छा! कुछ परवाह नहीं। हाँ, इसी धुन की एक और हो; मगर उसमें फुरकत का मजमून न हो क्योंकि आज खुशी का दिन है।
गायिका––जो हुकुम। (उसी चाल में गाती है)