पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/६३०

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नवाँ दृश्य
स्थान––राजा सूर्य्यदेव के डेरे
(एक भीतरी डेरे में रानी नीलदेवी बैठी हैं और बाहरी
डेरे में क्षत्री लोग पहरा देते हैं)

नील॰––(गाती और रोती हुई)

तजी मोहि काके ऊपर नाथ!
मोहि अकेली छोड़ि गए तजि बालपने को साथ॥
याद करहु जो अगिनि साखि दै पकर्‌यो मेरो हाथ।
सो सब मोह आज तजि दीना कीनो हाय अनाथ॥
प्यारे क्यों सुधि हाय बिसारी?
दीन भईं बिड़री हम डोलत हा हा होय तुमारी॥
कबहुँ कियो आदर जा तन को तुम निज हाथ पियारे।
ताही की अब दीन दसा यह कैसे लखत दुलारे॥
आदर के धन सम जा तन कहँ निज अंकम तुम धार्‌यौ।
ताही कहँ अब पर्‌यौ धूर में कैसे नाथ निहार‌यौ॥
प्यारे कितै गई सो प्रीति?
निठुर होइ तजि मोहि सिधारे नेह निबाहन रीति॥
कह्यो रह्यो जो छिन नहिं तजिहैं मानहु बचन प्रतीति।
सो मोहि जीवन लौं दुख दीनो करी हाय विपरीति॥