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चौथा दृश्य
स्थान––सराय
(भठियारी, चपरगट्टू खाँ और पीकदानअली)
चपर॰––क्यों भाई अब आज तो जशन होगा न? आज तो वह हिंदू न लड़ेगा न?
पीक॰––मैंने पक्की खबर सुनी है। आज ही तो पुलाव उड़ने का दिन है।
चपर॰––भाई, मैं तो इसी से तीन-चार दिन दरबार में नहीं गया। सुना वे लोग लड़ने जायँगे। मैंने कहा जान थोड़ी ही भारी पड़ी है। यहाँ तो सदा भागतों के आगे मारतों के पीछे। जबान की तेग कहिए दस हजार हाथ झारूँ।
पीक॰––भई, इसी से तो कई दिन से मैं भी खेमों की तर्फ नहीं गया। अभी एक हफ्ता हुआ, मैं उस गाँव में एक खानगी है उसके यहाँ से चला आता था कि पाँच हिंदुओं के सवारों ने मुझे पकड़ लिया और तुरक-तुरक करके लगे चपतियाने। मैंने देखा कि अब तो बेतरह फँसे मगर वल्लाह मैंने भी अपनी कौम और दीन की इतनी मजम्मत और हिंदुओं की इतनी तारीफ की कि उन लोगों