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भारतेंदु-नाटकावली

देखो मैं क्या करता हूँ। किधर-किधर भागेंगे।

(सत्यानाश फौजदार आते हैं)

(नाचता हुआ)

सत्या० फौ०--हमारा नाम है सत्यानास। आए हैं राजा के हम पास॥
धरके हम लाखों ही भेस। किया चौपट यह सारा देस॥
बहुत हमने फैलाए धर्म। बढाया छुआछूत का कर्म॥
होके जयचंद हमने इक बार। खोल ही दिया हिंद का द्वार॥
हलाकू चंगेजो तैमूर। हमारे अदना अदना सूर॥
दुरानी अहमद नादिरसाह। फौज के मेरे तुच्छ सिपाह॥
हैं हममें तीनो कल बल छल। इसी से कुछ नहिं सकती चल॥
पिलावैगे हम खूब शराब। करैगे सबको आज खराब॥


भारतदु०--अहा सत्यानाशजी आए। आओ, देखो अभी फौज को हुक्म दो कि सब लोग मिलके चारों ओर से हिंदुस्तान को घेर लें। जो पहिले से घेरे हैं उनके सिवा औरों को भी आज्ञा दो कि बढ चलें।


सत्या० फौ०--महाराज ! "इंद्रजीत सन जो कछु भाखा, सो सब जनु पहिलहिं करि राखा।" जिनको आज्ञा हो चुकी है वे तो अपना काम कर ही चुके और जिसको जो हुक्म हो, कह दिया जाय।


भारत दु०--किसने किसने क्या क्या किया है?