पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/५४७

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४४२
भारतेंदु-नाटकावली

पलाशी का अपभ्रंश बोध होता है, क्योकि जैनग्रंथों में उस भूमि के पलाशवृक्ष से आच्छादित होने का वर्णन देखा गया है।

जैन और बौद्धो से इस देश से और भी अनेक संबंध हैं। मसीह के छः सौ बरस पहले बुद्ध पहले पहल राजगृह ही में उदास होकर चले गए थे। उस समय इस देश की बड़ी समृद्धि लिखी है और राजा का नाम बिंबिसार लिखा है। ( जैन लोग अपने बीसवे तीर्थेकर सुर्बत स्वामी का राजगृह में कल्याणक भी मानते हैं )। बिंबिसार ने राजधानी के पास ही इनके रहने को कलद नामक बिहार भी बना दिया था। फिर अजातशत्रु और अशोक के समय में भी बहुत से स्तूप बने। बौद्धों के बड़े-बड़े धर्मसमाज इस देश में हुए। उस काल में हिंदू लोग इस बौद्ध धर्म के अत्यंत विद्वेषी थे। क्या आश्चर्य है कि बुद्धों के द्वेष ही से मगध देश को इन लोगो ने अपवित्र ठहराया हो और गौतम की निंदा ही के हेतु अहल्या की कथा बनाई हो।

भारत-नक्षत्र नक्षत्री राजा शिवप्रसाद साहब ने अपने इतिहास-तिमिरनाशक के तीसरे भाग में इस समय और देश के विषय में जो लिखा है वह हम पीछे प्रकाशित करते हैं। इससे बहुत सी बातें उस समय की स्पष्ट हो जायँगी।

प्रसिद्ध यात्री हिआनसॉग सन् ६३७ ई० में जब भारत-