पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/५४३

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४३८
भारतेंदु-नाटकावली

मेजर विल्फर्ड ने मुद्राराक्षस के कवि का नाम गोदावरी-तीर-निवासी अनंत लिखा है, किंतु यह केवल भ्रममात्र है। जितनी प्राचीन पुस्तके उत्तर वा दक्षिण में मिलीं, किसी में अनंत का नाम नहीं मिला है।

इस नाटक पर वटेश्वर मैथिल पंडित की एक टीका भी है। कहते हैं कि गुहसेन नामक किसी अपर पंडित की भी एक टीका है, किंतु देखने में नहीं आई। महाराज तंजौर के पुस्तकालय में व्यासराज यज्वा की एक टीका और है।

चंद्रगुप्त * की कथा विष्णुपुराण, भागवत आदि पुराणों में और बृहत्कथा में वर्णित है। कहते हैं कि विकटपल्ली के राजा चंद्रदास का उपाख्यान लोगों ने इन्हीं कथाओं से निकाल लिया है।

महानंद अथवा महापद्मनंद भी शूद्रा के गर्भ से था, और कहते हैं कि चंद्रगुप्त इसकी एक नाइन स्त्री के पेट से पैदा हुआ था। यह पूर्वपीठिका में लिख पाए है कि इन लोगो की राजधानी पाटलिपुत्र थी। इस पाटलिपुत्र ( पटने ) के विषय में यहाँ कुछ लिखना अवश्य हुआ। सूर्यवंशी सुदर्शन राजा की


  • प्रियदर्शी, प्रियदर्शन, चन्द्र, चंद्रगुप्त, श्रीचंद्र, चंद्रश्री, मौर्य यह

सब चद्रगुप्त के नाम हैं; और चाणक्य, विष्णुगुप्त, द्रोमिल वा द्रोहिण, अशुल, कौटिल्य यह सब चाणक्य के नाम हैं।

सुदर्शन, सहस्रबाहु अर्जुन का भी नामांतर था, किसी किसी ने भ्रम से पाटली को शूद्रक की कन्या लिखा है।