अपनो देस धरम कुल समुझहु छोड़ि वृत्ति निज दासी। उद्यम करिकै होहु एकमति निज बल बुद्धि प्रकासी॥ पंचपीर की भगति छोड़ि के ह्वै हरिचरन उपासी। जग के और नरन सम येऊ होउ सबै गुनरासी॥