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उपसंहार---( क )
इस नाटक में आदि, अंत तथा अंकों के विश्रामस्थल में रंगशाला में ये गीत गाने चाहिएँ। यथा----
सबके पूर्व मंगलाचरण में।
( ध्रुवपद चौताला )
जय जय जगदीस राम, श्याम-धाम पूर्ण-काम,
आनँदघन ब्रह्म विष्णु, सत्-चित-सुखकारी।
कंस-रावनादि-काल, सतत-प्रन्त भक्त-पाल,
सोभित - गल - मुक्तमाल, दीनतापहारी॥
प्रेमभरन पापहरन, असरन-जन-सरन-चरन,
सुखहि-करन दुखहि-दरन, वृंदावनचारी।
रमावास जगनिवास, राम रमन समनवास,
विनवत 'हरिचंद' दास, जयजय गिरिधारी॥
( प्रस्तावना के अंत में प्रथम अंक के आरंभ में। चाल लखनऊ की ठुमरी "शाहजादे आलम तेरे लिये" इस चाल की )
जिनके हितकारक पंडित हैं तिनकों कहा सत्रुन को डर है।
समुझैं जग मैं सब नीतिन्ह जो तिन्हैं दुर्ग विदेस मनो घर है।