पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/५२४

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सप्तम अंक

स्थान---सूली देने का मसान

( पहिला चांडाल आता है )

चांडाल---हटो लोगो हटो, दूर हो भाइयो, दूर हो। जो अपना प्राण, धन और कुल बचाना हो तो दूर हो। राजा का विरोध यत्नपूर्वक छोड़ा।

करि कै पथ्य-विरोध इक रोगी त्यागत प्रान।
पै बिरोध नृप सो किए नसत सकुल नर जान।।

जो न मानो तो इस राजा के विरोधी को देखो जो स्त्री-पुत्र समेत यहाँ सूली देने को लाया जाता है। ( ऊपर देखकर ) क्या कहा कि 'इस चंदनदास के छूटने का कुछ उपाय भी है?' भला इस बिचारे के छूटने का कौन उपाय है। पर हॉ, जो यह मंत्री राक्षस का कुटुंब दे दे तो छूट जाय। ( फिर ऊपर देखकर ) क्या कहा कि यह 'शरणागतवत्सल प्राण देगा पर यह बुरा कर्म न करेगा।' तो फिर इसकी बुरी गति होगी क्योंकि बचने का तो वही एक उपाय है।

( कंधे पर सूली रखे मृत्यु का कपड़ा पहिने चंदनदास, उसकी स्त्री और पुत्र दूसरा चांडाल आते हैं )