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मुद्राराक्षस

चंद्रगुप्त-चाणक्य सों मिलिए सुख सों आप।
हम तीनहुँ को नासिहैं जिमि त्रिवर्ग कहँ पाप॥

भागु०---कुमार! व्यर्थ अब कालक्षेप मत कीजि । कुसुमपुर घेरने को हमारी सेना चढ़ चुकी है।

उड़िकै तियगन गंड जुगल कहँ मलिन बनावति।
अलिकुल से कल अलकन निज कन धवल छवावति॥
चपल तुरग-खुर-घात उठी घन घुमड़ि नवीनी।
सत्रु-सीस पै धूरि परै गजमद सों भीनी॥

( अपने भृत्यों के साथ मलयकेतु जाता है )

राक्षस---( घबड़ाकर ) हाय! हाय! चित्रधर्मादिक साधु सब व्यर्थ मारे गए। हाय! राक्षस की सब चेष्टा शत्रु को नहीं, मित्रों ही के नाश करने को होती है। अब हम मंदभाग्य क्या करें?

जाहिं तपोवन, पै न मन शांत होत सह क्रोध।
प्रान देहिं रिपु के जियत यह नारिन को बोध॥
खींचि खड्ग कर पतँग समाजहिं अनल अरि-पास।
पै या साहस होइहै चंदनदास बिनास॥

( सोचता हुआ जाता है )