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भारतेंदु-नाटकावली

जे रहे धावत, ठिठकि ते गज मूक घंटा सह सधे।
मरजाद तुव नहिं तजहिं नृपगण जलधि से मानहुँ बँधे॥

मलय०---अजी जाजले! तुम भी सब लोगों को लेकर जाओ, एक केवल भागुरायण मेरे संग रहे।

कंचुकी---जो आज्ञा।

[ सबको लेकर जाता है

मलय०---मित्र भागुरायण! जब मैं यहाँ आता था तो भद्रभट प्रभृति लोगो ने मुझसे निवेदन किया कि "हम राक्षस मंत्री के द्वारा कुमार के पास नहीं रहा चाहते, कुमार के सेनापति शिखरसेन के द्वारा रहेगे। दुष्ट मंत्री ही के डर तो चंद्रगुप्त को छोड़कर यहाँ सब बात का सुबीता जानकर कुमार का आश्रय लिया है।" सो उन लोगों की बात का मैंने आशय नहीं समझा।

भागुल---कुमार! यह तो ठीक ही है, क्योकि अपने कल्याण के हेतु सब लोग स्वामी का आश्रय हित और प्रिय के द्वारा करते हैं।

मलय०---मित्र भागुरायण! तो फिर राक्षस मंत्री तो हम लोगों का परम प्रिय और बड़ा हित है।

भागुल---ठीक है, पर बात यह है कि अमात्य राक्षस का बैर चाणक्य से है, कुछ चंद्रगुप्त से नहीं है, इससे जो चाणक्य की बातों से रूठकर चंद्रगुप्त उससे मंत्री का काम ले ले और नंदकुल की भक्ति से "यह नंद ही के वंश का है"