बाबू हरिश्चन्द्र ने पहिली साहित्यिक मासिक पत्रिका 'कवि-वचन- सुधा' प्रकाशित की, जो बाद को साप्ताहिक तथा बड़े आकार की हो गईं। इसमें गद्य-पद्य दोनों रहते थे और राजनीति, समाज, धर्म आदि सभी विषयों पर लेख दिए जाते थे तथा कुछ समाचार भी संकलित रहते थे। इस पत्रिका को भारतेन्दु जी ने कुछ वर्षों के बाद एक महाराष्ट्र सज्जन को, उनके आग्रह पर, दे दिया था; परन्तु वह किसी प्रकार कुछ दिन चलकर जन्मदाता के साथ-साथ चल बसी। सं० १९३० में भारतेन्दु जी ने 'हरिश्चन्द्र मैगजीन' मासिक पत्र निकाला, जो आठ संख्याओं के बाद हरिश्चन्द्र-चन्द्रिका, नाम से प्रसिद्ध हुई। इसमें कुछ पृष्ठ अँगरेजी के भी रहते थे। इसमें साहित्यिक लेखों के साथ कुछ अलभ्य काव्य-ग्रंथ आदि भी प्रकाशित हुए थे। आठ वर्ष हिन्दी-प्रेमियो का मनोरंजन कर यह पं० मोहनलाल विष्णुलाल पंड्या के आग्रह से उनके हाथ जाकर सं० १९३७ में 'हरिश्चन्द्र-चन्द्रिका और मोहन चन्द्रिका' हो गई और सं० १९३८ में काशी से श्रीनाथ जी जाकर उन्हीं के श्री चरणों में लीन हो गई। सन् १८८४ 'नवोदिता हरिश्चन्द्र-चन्द्रिका' नाम से छोटे आकार में यह पुनः प्रकाशित की गई; पर स्वयं भारतेन्दु जी दो ही संख्या निकाल कर चल बसे। इसका तीसरा अंक उनकी मृत्यु के बाद प्रकाशित हो कर रह गया। 'बालाबोधिनी' नामक स्त्रियोपयोगी मासिक पत्रिका को जनवरी सन् १८७४ से भारतेन्दु जी ने निकालना आरम्भ किया था। यह पत्रिका भी चार वर्ष चलकर बन्द हो गई।