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भारतेंदु-नाटकावली

हलचल हो रहा है। भद्रभट इत्यादि तो सब पिछली ही रात भाग गए।

चाणक्य---( आप ही आप ) सब काम सिद्ध करें। ( प्रकाश ) बेटा, सोच मत करो।

जे बात कछु जिय धारि भागे, भले सुख सो भागहीं।
जे रहे तेहू जाहिं, तिनको सोच मोहि जिय कछु नहीं॥
सत सैन हू सो अधिक साधिनि काज की जेहि जग कहै।
सो नंदकुल की खननहारी बुद्धि नित मो मैं रहै॥

( उठकर और आकाश की ओर देखकर ) अभी भद्र-भटादिको को पकड़ता हूँ। ( आप ही आप ) राक्षस! अब मुझसे भाग के कहाँ जायगा, देख---

एकाकी मदगलित गज, जिमि नर लावहिं बॉधि।
चंद्रगुप्त के काज मैं तिमि तोहि धरिहौं साधि॥

( सब जाते हैं---जवनिका गिरती है )