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मुद्राराक्षस

जब और भी लोग पहुँच जायँ तब यह काम करना।

( कान में समाचार कहता है। )

सिद्धा०---जो आज्ञा महाराज।

चाणक्य---शारंगरव! शारंगरव!!

शिष्य---( आकर ) आज्ञा गुरुजी!

चाणक्य---कालपाशिक और दंडपाशिक से यह कह दो कि चंद्रगुप्त आज्ञा करता है कि जीवसिद्धि क्षपणक ने राक्षस के कहने से विषकन्या का प्रयोग करके पर्वतेश्वर को मार डाला, यही दोष प्रसिद्ध करके अपमानपूर्वक उसको नगर से निकाल दें।

शिष्य---जो आज्ञा। ( घूमता है )

चाणक्य---बेटा! ठहर-सुन, और वह जो शकटदास कायस्थ है वह राक्षस के कहने से नित्य हम लोगों की बुराई करता है। यही दोष प्रगट करके उसको सूली दे दें और उसके कुटुंब को कारागार में भेज दें।

शिष्य---जो आज्ञा महाराज।

[ जाता है

चाणक्य---( चिंता करके आप ही आप ) हा! क्या किसी भॉति यह दुरात्मा राक्षस पकड़ा जायगा?

सिद्धा०---महाराज! लिया।

चाणक्य---( हर्ष से आप ही आप ) अहा! क्या राक्षस को ले लिया? ( प्रकाश ) कहो, क्या पाया?